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राष्ट्र- हित है हाशिए पर

kavita
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राजनेता कर रहे अपने व्यापार !
देश को अब चाहिए फिर नीति-नूतन धार !!

हो रही पावन धरा पर
झूठ की खेती ,
चल रही सच के गले पर
रात-दिन रेती 1

सूप अब थोथा गहे बाहर उड़ाए सार !
देश को अब चाहिए फिर नीति-नूतन धार !!

परखचे हैं उड़ रहे
आदर्श-मूल्यों के
मन्द पड़ते तेज अब
शाश्वत अतुलयों के

अर्थ खोते जा रहे अपने सदा आचार !
देश को अब चाहिए फिर नीति-नूतन धार !!

अनय को नय सिद्ध करने में
लगे हैं लोग ,
बन रहे हैं पीढ़ियों के
मृत्यु के दुर्योग

सिद्ध होते इस मिथक के कौन तोड़े द्वार !
देश को अब चाहिए फिर नीति-नूतन धार !!

घेरकर अभिमन्यु को
कर रहे अट्टाहास
तोड़ना अब कठिन है
इन शकुनियों के पाश

दूर अर्जुन कृष्ण हैं दिखते नहीं आसार !
देश को अब चाहिए फिर नीति-नूतन धार !!

कहाँ है अब कहीं भी
दिखता नहीं जनतन्त्र
पल रहे सामंतियों के
पक्ष में हैं मन्त्र

राजतंत्री वृत्तियों का हो रहा विस्तार !
देश को अब चाहिए फिर नीति-नूतन धार !!

इस कदर अब व्याप्त सत्ता का
यहाँ है मोह
स्वार्थ में अंधे यहाँ
कर बैठते हैं द्रोह

राष्ट्र- हित है हाशिए पर खिल रहा परिवार !
देश को अब चाहिए फिर नीति-नूतन धार !!

– विजय गुंजन

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