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रिश्तों के मौजों की गई रबानी परदेशी

kavita
kavita
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नहीं मिलेंगे इसमें राजा – रानी परदेशी !
सुनो सुनाता हूँ मैं एक कहानी परदेशी !!
=
जीवन जटिल कठिन है जीना
पर्वत से हैं दिन ,
अभिलाषाओं को घेरे हैं
महाजनों के ऋण |
=
घात लगाए इज्जत पर है दानी परदेशी !
सुनो सुनाता हूँ मैं एक कहानी परदेशी !!
=
छल – छद्मों के सर्प चतुर्दिक
पथ में फन काढ़े
निर्निमेष है दृष्टि गड़ाए
लख तन-मन हारे |
=
अपनी नहीं सभी की बनी ज़ुबानी परदेशी !
सुनो सुनाता हूँ मैं एक कहानी परदेशी !!
=
जाती – पाति बन गई कसौटी
मेधा रही सिसक ,
वाद और परिवादों के
घेरों में रही भटक |
=
रिश्तों के मौज़ों की गई रवानी परदेशी !
सुनो सुनाता हूँ मैं एक कहानी परदेशी !!
=
भावुकता का मरण हो गया
जड़ता नाँच रही ,
धूम – धाम से कर्मकांड की
पोथी बाँच रही |
=
सूख गई वह दिल की नदी हिमानी परदेशी !
सुनो सुनाता हूँ मैं एक कहानी परदेशी !!
=
पीड़ा औ’ संत्रासों के नित
छंद नए रचते ,
दूर – दूरतक वे उनसे
सम्बन्ध नहीं रखते |
=
घड़ियाली उनकी आँखों का पानी परदेशी !
सुनो सुनाता हूँ मैं एक कहानी परदेशी !!
=
छोड़ साधना ठकुरसुहाती में
रत हैं दिन – रात ,
ऐसे में कैसे बन पायेगी
गरिमा की बात |
=
कैसे द्वार खोल दे अपना वाणी परदेशी !
सुनो सुनाता हूँ मैं एक कहानी परदेशी !!
आचार्य विजय ‘ गुंजन ‘

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