kavita
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झूठ कहकर प्यार उनका है किसी ने पा लिया |
सुन न पाए सच वो मेरा हमने गम अपना लिया ||
प्रीति के प्रतिमान बदले या कि बदले आइने |
दे गये वो घाव दिल पर जो न जा सकते गिने ||
दर्द के दानी बने महबूब जो थे बेरहम |
दे दिया गम का खजाना हर ख़ुशी लुटवा लिया ||
बेवफा है दिलरुबा उसको वफ़ा आई नहीं |
चाँद थी पर ज्वाल बनने में वो शरमाई नहीं ||
चाँदनीं बरसा रही है अब यहाँ चिंगारियां |
जल गए लेकिन निशानी में फफोला पा लिया ||
हम ने उनको जान माना वो नहीं है जानते |
मै तड़प कर मर रहा हूँ वो न फिर भी मानते ||
जान जायेंगे अगर जो मै तड़प कर मर गया |
रूह जा पूछेगी उनसे प्यार को क्यूँ खा लिया ?
आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
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