kavita
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बह अपंगों से रहा जो नीर उसको रोक दो |
ठग न विशवामित्र जाए मेनका को टोक दो ||
पिंगला की प्रीति बदली जान लो ये भर्तृहरि |
राजनीती को बचाओ ज्ञान को आलोक दो ||
प्राण दशरथ के गये थे कैकेयी मानी नहीं |
प्रेम अन्धा है सदा से राम को मत शोक दो ||
प्रेम तुलसी ने किया रत्नावली से क्या मिला ?
राम की भक्ति में सारी शक्ति अपनी झोंक दो ||
प्रेम शाश्वत सार है शिव प्रेम घोलो भक्ति में |
राहबर हो रूह के तुम रूह को ध्रुवलोक दो ||
आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
९४१२२२४५४८
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