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गजल -सुबह हो शाम या दुपहर तुम्हारी याद आती है |

kavita
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सुबह हो शाम या दुपहर तुम्हारी याद आती है |
कहूं क्या रात का आलम गुजर आखों में जाती है ||

बनाया है खुदा ने हाय तेरा रूप धोखे से |
गरूरे हुस्न की मलिका तेरी सूरत रुलाती है ||

बना परवाना दिल मेरा मुहब्बत बन गयी जोती |
खुदा जाने बनी तू क्या दिया है याकि बाती है ?

बहुत ही बेवफां तुम हो बहुत मगरूर लगती हो |
गरूरे हुस्न में तू चूर दिल मेरा दुखाती है ||

जफ़ा हम कर नहीं सकते वफ़ा तुमने नहीं सीखी |
लगाई आग तूने दिल में अब दर्शन सिखाती है ||

न तुम आनंद सत चित हो न तुम अवतार हो कोई ?
मुहब्बत हो गयी तुमसे मुहब्बत आजमाती है ||

बनी तू मूर्ति पत्थर की या पत्थर दिल बना तेरा |
तुम्ही ख़्वाबों में आती हो हमारी जान जाती है ||

हँसी को भूल बैठा मैं सदा ग़मगीन रहता हूँ |
बता दे बेरहम मुझको तू कैसे मुस्कुराती है ||

खबर तुझको सभी कुछ है तडपता दिल मेरा हरदम |
तड़पता शिव को प्रिये तू खिलखिलाती है ||

आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
9412224548

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