kavita
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तू विदूषक कहे याकि शायर कहे |
अश्क बहते थे जो वो तो बहते रहे ||
खो गया हूँ कहाँ ?मैं स्वयं बेखबर |
जाने कितने गजल गीत दिल ने कहे ||
झूठ तेरा प्रिये मैं समझ ना सका |
सच मेरा पीर संसार में प्रियतमे ||
है तपस्या कोई या हठ योग है ?
सच्चिदानंद तू या कोई भोग है ?
कौन योगी मुझे ज्ञान देगा यहाँ ?
प्रेम मीरा मुरारी भी संजोग है ||
प्रार्थना वंदना प्रेम आराधना |
साधना व्यर्थ तकरार में प्रियतमे ||
रतजगे जाने कितने किये रात में ?
बन गया मैं तो शायर तेरी बात में |
रागिनी कह रही तू मेरी कामिनी |
मैं नहीं हूँ प्रिये अपनी औकात में |
तुम निगाहों से खंजर चलाती रही |
दिल कटा बीच बाजार में प्रियतमे ||
आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
9412224548
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