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गज़ल -पीर तकदीर को भी आज तू ललकार दे |

kavita
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पीर तकदीर को भी आज तू ललकार दे |
तू भागीरथ बन धरा को आज गंगा धार दे ||

सच यही है प्यार दुनिया का मिला तुझको नहीं |
आज है लाचार दुनिया तू इसे भी प्यार दे ||

मुफ्लिशों का भी मुकद्दर हो रहा नीलाम है |
मुफ्लिशों को जंग की तालीम दे तलवार दे ||

आँख का पानी बताता आग तेरे दिल में है |
है हुई गन्दी सियासत आग की फुफकार दे ||

भूख से मरना नहीं तुम जंग में लड़कर मरो |
कब्र से लाशें बुला ले उनको तू हथियार दे ||

मुफ्लिशी की पीर अब ये मुल्क ना सह पायेगा |
जलजला बन क्रांति का अब क्रांति की झंकार दे ||

चाह शिव तांडव की है तो शर्त शिव की भी सुनो |
तख़्त तो हिल जाएगा पर हर जुबां हुंकार दे ||

आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी

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