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घनाक्षरी

kavita
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हो रहा ऋचा विलाप ,रागिनी का अभिशाप ,उर दामिनी कलाप ,खड्ग को उठा रहा |
पीर प्रतिमान काल, ब्याल ज्वाल जाल बन ,संयम को छोड़ नाग, पाश मंत्र गा रहा ||
साधना विधान पूर्ण ,अर्चना व ध्यान पूर्ण ,सफलता की प्राप्ति का, हठ योग छा रहा |
होनहार को न कोई, टाल सका आज तक ,होनी जो है होनी व्यर्थ, शिव अकुला रहा ||

राणा जी की शौर्य शक्ति भामाशाह देश भक्ति , भूषण कवित्व शक्ति मुझमे समाई है |
निश्चित है शुम्भ औ निशुम्भ चंड मुंड नाश चंडी प्रचंडी रण भुसुंडी धार धाई है ||
पीर से अधीर वीर चूम चुका शमशीर ,शिव तांडव की घटा अम्बर में छाई है |
भूषण का छंद शिवा का रण प्रबंध देख मातु कालिका की जीभ आज ललचाई है ||

ध्यान अब करो महाकाली भद्रकाली माँ का मातु शारदा को विदा करना जरूरी है |
भैरव बजाओ राग यमराज गीत गाओ तख़्त ए सियासत पलटना जरूरी है ||
देश द्रोह गन्दगी से उगा है जो पीर गिरि पर्वत वो पीर का पिघलना जरूरी है |
मातु उर में विंधा है भ्रष्टाचार का जो तीर भर्ती के उर से निकलना जरूरी है ||

आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
9412224548

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