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शनि चालीसा

kavita
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शनि चालीसा

गणपति का कर ध्यान ,कहै शिव शनि चालीसा |
शारद मातु मनाय ,बंदि श्रीपति जगदीसा ||
अधिपति न्याय कृतान्त ,न्याय करते शनिदेवा |
दास रहा समझाय ,करो सब शनि की सेवा ||

शनिदेव कृपामय दृष्टि करो |हम दीन हुए अब कष्ट हरो ||
शरणागत वत्सल आप पृभो |सूत सूर्य यमाग्रज मंद विभो ||
तुम पिंगल कृष्ण शनैश्वर हो|प्रिय न्याय तुम्हे ग्रह ईश्वर हो ||
सुर वभ्रुव मृत्यु समान अहो |शितिकंठ कृतांत कृपालु रहो ||
यम संज्ञक हो तप दग्ध शनी |कृशकाय शनैश्चर योग धनी ||
नृप विक्रम बुद्धि मिटी सगरी |जब दृष्टि कुदृष्टि हुई तुमरी ||
कर पाव कटे तन कान्ति घटी |सब ज्ञान मिटा उर शान्ति हटी ||
जब विक्रम की सद्बुद्धि जगी |शनि अस्तुति में तब भक्ति पगी ||
फिर दीप जले शनि अस्तुति से |तन विक्रम तेज जगा द्युति से ||
मन पीर मिटी भ्रम भ्रांति भगी |कर पाव उगे तन कांति जगी ||
नृप विक्रम भूप बने फिर से |करके शनि अर्चन वो हरषे ||
अमरावती सा सुख भोग किया |फल फूल गयी सुख की बगिया ||
सब निर्णय विकम श्रेष्ठ रहे |नृप थे सरताज समाज कहे ||
नल भूपति का सब राज्य छिना |तडपे नृप भूंख से अन्न बिना ||
सब छूट गए प्रिय पुत्र प्रिया |शनि रूठ गए अति कष्ट दिया ||
जब राम सिया पर दृष्टि करी |बनवास मिला सिय दुष्ट हरी ||
दशकंठ हरी जब मातु सिया |कुल रावण का मिटवाय दिया ||
पुर लंक विध्वंश कराय दिया |तुमने बदला शनिदेव लिया ||
रण जूझ मरे सब दैत्य तभी |दशकंधर या घननाद सभी ||
दश शीस कर बीस कटे | बन भूप विभीषन राम रटे ||
कुल कौरव दर्प अपार हुआ |मति भ्रष्ट हुई मझधार जुआ ||
प्रिय पांडव का अपमान किया |वन बारह वर्ष वितान दिया ||
मति फेरि सुयोधन की बिगरी |नृप नीति अनीति करी सगरी ||
उसने हक पांडव का न दिया |रण भारत युद्ध महान किया ||
मिट सूर गए सब कौरव थे |जय पांडव की कुल गौरव थे ||
जय कीर्ति चली कुल पांडव की |अपकीरति कौरव बांधव की ||
नव वाहन मंद विचार अहै |फल ज्योतिष भिन्न प्रकार कहै ||
जब गर्दभ वाहन मंद चलै |उजडै सुख शान्ति न भाग्य फलै ||
शनि वाहन अश्व विशेष कहा |रिपु जीति मिलै सुख शान्ति महा ||
जब हस्ति शनैश्वर वाहन हो |धन वैभव लाभ अकारन हो ||
महिषा शनि वाहन नेष्ट करी |धन हानि निरर्थक ब्याधि भरी ||
जब सिंह सवार शनैश्चर हो |रण जीत मिलै रिपु चाकर हो ||
अति नेष्ट सियार सवार शनी |प्रिय मित्र विरोध विपत्ति घनी ||
यह काग कुभाग करै सबका |तन क्षीर्ण करै दुःख दे मनका ||
शुभ वाहन मंद मयूर अहै |सुख सम्पति शांति प्रसिध्दि लहै ||
अति पावन वाहन हंस रहै |मन शांति मिलै सुख वायु बहै ||
तन की द्युति श्याम शनैश्वर की |जय सौरि प्रभो जगदीश्वर की ||
भगवंत दिगंत चराचर के |सुत ज्येष्ठ प्रधान दिवाकर के ||
जय मंद कृतांत अनंत विभो |करिए करुनामय दृष्टि पृभो ||
शिवदास करै विनती शनि की |शुभ दीप्ति दिखै उर के मनि की ||

शनि सेवक शिवदास, शनि चालीसा शुभ रच्यो |
पूरी हो हर आस, जो चालीस दिन पाठ हो ||

आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
9412224548

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