Achyutam keshvam
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तमस की काली कारा तोड़ ,स्वर्णकण खचित नील परिधान .
धरे ,प्राची से प्रकटी उषा ,अंक में शिशु सूरज बलवान .
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विहग उड़ चले नीड़ निज छोड़ ,
संग पाथेय आस-विश्वास .
समूची पृथ्वी पर अनुगूँज ,
कर्म से भाग्य बनेगा दास .
नभ में हो ऋतावरी खड़ी ,बताती ऋत के पन्थ तमाम .
अरे!प्राची से प्रकटी उषा ,अंक में शिशु सूरज बलवान .
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अकर्मठता आलस्य प्रलाप ,
बुरे सपनों का होता शमन .
हुई जड़ पर चेतन की विजय ,
विभागण करते पश्चिम गमन .
सुनहले रथ पर हो आरूढ़ ,जगत का करती नित कल्याण .
अरे!प्राची से प्रकटी उषा ,अंक में शिशु सूरज बलवान .
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विश्वारा ने फूँका शंख ,
जगा जग तंद्रित-निद्रित-सुप्त.
संग ले भीनी जीवन गंध ,
सुवासित पवन बहे उन्मुक्त.
अभय मुद्रा में ज्योतिष्नात ,वामकर अरुण केतु को थाम .
अरे!प्राची से प्रकटी उषा ,अंक में शिशु सूरज बलवान .
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