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कोटि-कोटि वर्षों से यूँही कुम्भकार का चाक घूमता .

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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कोटि-कोटि वर्षों से यूँही
कुम्भकार का चाक घूमता .

दूर-दूर तक अन्तरिक्ष में
घूम रहे हैं यान उसी के.
अंकित जो पदचिह्न चन्द्र पर
गाते गौरवगान उसी के .
सिन्धु तटों से सिन्धु तटों तक
कीर्ति-वल्लरी फ़ैल रही है .
जगतजयी है किन्तु करों में
रीता भिक्षा-पात्र उसीके .
भरे हाट में गाँठ कटा ज्यों
त्राण खोजता प्राण सूम का
कोटि-कोटि वर्षों से यूँही
कुम्भकार का चाक घूमता .१.

अहोरात्र अनवरत कर्म से
हुए कठिन गिरी-शिखर ध्वस्त हैं .
और समय से तीव्र अग्रसर
चला सयन्दन पथ-प्रशस्त है
जगत बंद जिसकी मुट्ठी में
दिग्दिगंत तक विजय पताका
वही मनुज क्यूँ लुटा पिता सा
दीखता हारा थका पस्त है .
भीतर हाहाकार भरा है
बाहर से मदमस्त झूमता .
कोटि-कोटि वर्षों से यूँही
कुम्भकार का चाक घूमता .२.

यह प्रकृति तो है पान्चाली
मनुज हुआ दुश्शासन जाने .
है रहस्य ही चीर रुपहला
नर जिसको हरने की ठाने .
अनावरण करने की इच्छा
टूट चुकी है थकी भुजाएं .
पर जिज्ञासा कुटिल शकुनिवत
ललकारे यूँ हार न माने
पर उलझे धागे कब सुलझे
व्यर्थ गया श्रम ह्रदय शून्यता .
कोटि-कोटि वर्षों से यूँही
कुम्भकार का चाक घूमता .३.

अर्थ काम के लिए मनुज ने
धर्म मोक्ष को भुला दिया था .
कल्पलता का फल चखने को
मानव ने क्या नहीं किया था .
पर ठोकर से सबकुछ खोकर
अब सच से पहिचान बनी है
रजनी के तिमिरान्ध गर्भ से
कल सूरज ने जन्म लिया था .
त्याग पथी हो रश्मिरथी सा
भौम -व्योम का भाल चूमता .
कोटि-कोटि वर्षों से यूँही
कुम्भकार का चाक घूमता .४.

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