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हिन्दी नभ सस्मित विकसित प्रेमचन्द -जन्म जयंती पर नमन

Achyutam keshvam
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पारतन्त्रय की दमन और शोषण की . वह विभा गहन दुर्जन उलूक तोषण की . - द्वितीया चन्द्र सरीखे तिमिर सघन में . दल बढ़े विघ्न हिन्दी साहित्य गगन में . - मजदूर कृषक स्त्री दरिद्र की पीड़ा . मिटे ,मिलें अधिकार उठाया बीड़ा . - बन गयी लेखनी शस्त्र क्रान्तिधर्मी का . कथा क्षेत्र रण-अंगण रणकर्मी का . - साहित्य नहीं है कर्म मनोरंजन का . साहित्यिक का धर्म रूढ़ि-भंजन का . - कलम नहीं कर कलम-कृपाण कहो रे . पाखण्ड भित्तीयाँ बढ़कर आज ढहो रे . - कर सके न कंटक हीन प्रगति के पथ को . श्रेयस्कर तज चलो देह के रथ को . - कथा-कथा में व्यथा यही अभिव्यक्तिमयी. चली हवा परिवर्तन की अति शक्तिमयी . - इन्द्रधनुष ले इंद्र उपन्यासों का . ऋण चुकती करता भू को सांसों का . - ज्ञान गवाक्ष खुले पड़े थे बंद . हिन्दी नभ सस्मित विकसित प्रेमचन्द
पारतन्त्रय की दमन और शोषण की .
वह विभा गहन दुर्जन उलूक तोषण की .

द्वितीया चन्द्र सरीखे तिमिर सघन में .
दल बढ़े विघ्न हिन्दी साहित्य गगन में .

मजदूर कृषक स्त्री दरिद्र की पीड़ा .
मिटे ,मिलें अधिकार उठाया बीड़ा .

बन गयी लेखनी शस्त्र क्रान्तिधर्मी का .
कथा क्षेत्र रण-अंगण रणकर्मी का .

साहित्य नहीं है कर्म मनोरंजन का .
साहित्यिक का धर्म रूढ़ि-भंजन का .

कलम नहीं कर कलम-कृपाण कहो रे .
पाखण्ड भित्तीयाँ बढ़कर आज ढहो रे .

कर सके न कंटक हीन प्रगति के पथ को .
श्रेयस्कर तज चलो देह के रथ को .

कथा-कथा में व्यथा यही अभिव्यक्तिमयी.
चली हवा परिवर्तन की अति शक्तिमयी .

इन्द्रधनुष ले इंद्र उपन्यासों का .
ऋण चुकती करता भू को सांसों का .

ज्ञान गवाक्ष खुले पड़े थे बंद .
हिन्दी नभ सस्मित विकसित प्रेमचन्द

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