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अच्युतम के दोहे

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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धुआं उगलती चिमनियाँ,कान फाड़ता शोर।
जाती शहरी सभ्यता ,निज विनाश की ओर।

घटती जाती हरीतिमा ,कटते जाते पेड़।
समय अश्व है दौड़ता ,मौत लगाये एड़।

जल सम मिलता था जहाँ ,दूध ओर मकरंद।
उस भारत में बिक रहा,पानी बोतल बंद ।

जहर खुरानी चल रही ,गंग जमुन के तीर।
युग के कान्हां पी रहे ,अब सिंथेटिक छीर ।

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