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एक ग़ज़ल छोटी सी

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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यक्षिणी हो या परी हो तुम।
सत्य या जादूगरी होत तुम।

सृष्टि -शिल्पी रच तुम्हें विस्मित हुआ,
कौन की कारीगरी हो तुम।

हो सहज इतनी कि अब मैं क्या कहूँ,
कृतयुगी अचरज भरी हो तुम।

बदली-बदली सी लगे दुनियाँ मुझे,
जानतीं बाजीगरी हो तुम।

मिष्ठ मिश्री कभी खट्टी इमलियाँ,
कभी मिर्ची चरपरी हो तुम।

मीन नैना पीन कुच बिम्बोष्ठी,
सुभग सुन्दर रसभरी हो तुम।

तीक्ष्ण प्रतिवादी भयंकर हो बड़ी,
तर्क की इक कर्तरी हो तुम।

बोल दो ना कब बनोगी पीतकर, 
अब तलक तो अन्वरी हो तुम।

हाल दिल का एक पल में भाँपतीं,
डाल दृष्टी सरसरी हो तुम।

चाहता सुलझो उलझती ओर ही,
पेहेली उलझन भरी हो तुम।

मन से तन से मखमली ओ रूपसी,
पर जुबाँ की खरखरी हो तुम।

ताज तो मुर्दा है तुम जीवंत हो,
पूर्णतःसँगमरमरी हो तुम।

विश्व रौशन जब तलक तुम सामने,
चमचमाती मरकरी हो तुम।

मन मुलायम ओढ़तीं कुलिशावरण
नारियल में ज्यों गरी हो तुम।

फैंकता लंबी जो कोई सिरफिरा,
पल में कर देतीं घरी हो तुम।

छाछ को भी चूँसती हो फूँक कर,
दूध से लगता जरी हो तुम।

सद्गगुणों की हो सहेली सत्वरा,
बस व्यसन अवगुण अरी हो तुम।

खोज खोटें मैं तुम्हारी थक गया,
मानता बिल्कुल खरी हो तुम।

अल्प विचलन भी गवारा है नहीं,
नीतिपथ की अनुचरी हो तुम।

अंत से आगाज़ करने में कुशल,
अनवरत अंताक्षरी हो तुम।

मरु-ह्रदय भर सिन्धु तुमने कर दिया,
प्रेम की वह निर्झरी हो तुम।

सिर दिआ है ओखली में तो प्रिये,
मूसलों से क्यों डरी हो तुम।

मिलन कालिक फगुनई बौछार प्रिय,
विरह आँसू बन ढरी हो तुम।

केश घन की छाँह करके नेह से ,
देह को देती तरी हो तुम।

चौंकती तुम छिपकली को देखकर,
देख झींगुर थरथरी हो तुम।

वादा करके भी न आयीं तो लगा,
कोई नेता खद्दरी हो तुम।

बाँट लो गम हमको अपना मानकर,
टीस जो मन में धरी हो तुम।

काम की उद्दाम नद में तैरती,
यूँ लगे इक जलपरी हो तुम।

कभी झाड़ो ज्ञान के उपदेश तो,
कभी लगता सिरफिरी हो तुम।

गालपर मेरे तमाचा जब कसा,
तब लगा था बर्बरी हो तुम।

माँगता हूँ मधुकरी यह सोचकर,
नेह से पूरी भरी हो तुम।

चाहने वाले तुम्हारे हैं बहुत,
जाने क्यों हम पर मरी हो तुम।

कामना उपवन सुवासित कर रहीं,
एक पुष्पित वल्लरी हो तुम।

जब मिलीं चलती मिलीं चलती रहीं,
जिन्दगी यायावरी हो तुम।

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