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क्या मेरी सामर्थ्य माँ ,रचूँ गजल या गीत .
मैं तो तेरी बाँसुरी ,गुँजित तव संगीत ..
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हिन्दी भाषा हिन्द की ,कल्याणी सुखधाम .
जहाँ उपेक्षित यह रहे,वहाँ विधाता वाम ..
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विश्व क्षितज पर देश का ,दिन-दिन बढ़े प्रताप .
पर अवलम्बन अनुकरण ,त्याग सकें यदि आप ..
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हिन्दी के उत्कर्ष में ,हम सबका उत्कर्ष .
अगर बढ़े यह तो बढ़े ,जन-गण-मन का हर्ष ..
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निज भाषा संस्कृति कला ,पर धरकर विश्वास.
जगत्गुरू हो माँ पुनः ,मिलकर करो प्रयास ..
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हस्त आमलक वत उसे ,स्वर्ग और अपवर्ग .
राष्ट्र याग में जो करे ,प्राणों का उत्सर्ग ..
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जाति-वर्ग-मत-पन्थ के ,यदि मिट जाए विभेद .
तो पलभर में दूर हो ,माँ के हिय का खेद ..
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दल-दल में कुक्कुट खड़े,अलग-अलग है बांग .
फूट फ़्लू रुक जाएगा ,इनकी तोड़ो टांग ..
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पग -पग बैठे वहाँ ,मिलते गधे अनेक .
संसद धोबी घाट सी ,गूँज रही है रेंक ..
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खूब कही सरकार ने ,उन्नति युक्ति अजीब .
मिटे गरीबी ना मिटे ,पर मिट जाए गरीब ..
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जीवेम बजटश्शतम ,करिये जाप अटूट .
जाने कब इस लठ्ठ से जाय खोपड़ी फूट ..
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किया हंस का निष्क्रमण ,आज भोगिये पाप .
उल्लू कौए शेष हैं ,किसे चुनेगे आप ..
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टुकड़ा-टुकड़ा बांटते ,काट-काट दिल केक .
नुक्कड़ चौराहे गली ,खड़े हुए दिल फेंक..
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नर तेरे कर सत्य की दोधारी करवाल .
अभ्यासी की रक्षिका ,अनभ्यस्त की काल ..
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रिश्ते नाते मित्रता ,सब मोबायल फोन .
शेष रहे रंगीनियाँ ,फिर हम तेरे कौन..
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भेज दिए जिस देश ने अन्तरिक्ष में यान .
उसकी धरती पर मरे ,खाकर जहर किसान ..
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उन अँखियन में चाँद है,इन अँखियन में नीर.
एक देश परिवेश है,अलग-अलग तकदीर ..
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जिसमे हवा गुरूर की ,उसका कैसा हाल.
ठोकर खाती डोलती ,जगह-जगह फ़ुटबाल ..
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अंतरतम की प्रेरणा ,ज्यों प्रकाश की रेख.
अमा निशा को भेदकर ,प्रज्ञा लेती देख..
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मिटते तर्क -वितर्क जब ,अह्म गया सुरधाम .
मन के आँगन में तभी ,प्रकटें राजा राम..
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परम सत्य की झलकियाँ ,जिसे कहें भ्रम लोग.
और नहीं माया कहीं ,और न कुछ संयोग ..
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पिता गुरु परमात्मा ,विकट लगायें मार .
मार नहीं वह प्यार है ,करता बेड़ा पार ..
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मेरे प्रभु तुमने दिया ,मुझे नरक में ठौर .
योग-क्षेम तव हाथ में,बस चिंतित मन चोर..
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मेरे प्रभु तुमने दिया ,मुझे नरक में ठौर.
जैसी करनी भर रहा ,क्यों मांगूं कुछ और..
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तर्क प्रेम का शत्रु है ,कीर्ति शत्रु अभिमान .
अपनी भ्रांति अपूर्णता, कौन सका है जान ..
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जो अशिष्ट में शिष्टता ,और घृण्य में प्रेम .
देखा करता है सदा ,सच उसका व्रत नेम ..
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तरह-तरह की बोतलें,पर इनका क्या काम .
साकी भर दे जाम तू ,छक जाए यह शाम ..
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अलग-अलग हैं बोतलें,अलग-अलग हैं गंध .
तू ढाले जा स्वाद सब ,नशा न होवे मंद..
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सबके आगे खेलते ,पाप-पूण्य का खेल .
पर्दे के पीछे करे,पाप पूण्य से मेल..
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करते उत्कट अभीप्सा, के सँग अथक प्रयास .
सागर पथ देते उन्हें ,झुकते गिरि सायास ..
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अपने जीवन को रचे ,मौत विश्व जंजाल .
तू परिवर्तन कर सके ,जीवन में कर डाल ..
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मृत्यु न होती विश्व में ,क्या होता अमरत्व .
बिना क्रूरता प्रेम का ,जग में नहीं महत्व ..
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होता केवल ज्ञान ही ना होता अज्ञान .
तो भू पर रहता सदा,हीन-क्षीण विज्ञान ..
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देख कुटिल संसार को, मनमत पाल विराग .
स्वयं सदाशिव धारते अंग-अंग पर नाग ..
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देश न दुःख करना कभी ,पढ़कर गत इतिहास .
हुआ कभी न महान वो,नहीं रहा जो दास ..
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जल्दी-जल्दी चल सखे ,अभी न ले विश्राम .
पथ के अंतिम छोर पर ,करें प्रतीक्षा राम..
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टीला जिनका लक्ष्य है ,चढ़ जायेंगे दौड़ .
ओ!आरोही हिमल के ,मत कर उनकी होड़ ..
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दृष्टि टिकी हो लक्ष्य पर ,पर मन हो निष्काम .
चलने का संकल्प हो ,सदा सहायक राम..
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घटनाएँ संसिद्ध हैं ,अभिव्यक्तित सायास .
जीवन फीचर फिल्म सा ,मन मत लगा कयास ..
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विश्वातीत स्वतन्त्रता ,के हित कर दो त्याग .
इससे बढ़कर है नहीं ,कोई जप-तप-याग ..
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शाष्त्र वचन अभ्रांत हैं ,आत्म दृष्टि यदि प्राप्त .
हृदय बुद्धि की व्याख्या ,किन्तु नहीं पर्याप्त..
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हिमगिरि से ऊँचे उठो ,सागर से गम्भीर.
मन सम्वेदनशीलता ,जाय क्षितिज को चीर..
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सन्यासी तो वेश से ,हो सकता है ज्ञात .
मन की मुक्तावस्थता ,सदा रहे अज्ञात ..
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गुप्ताकर्षणवत करे ,मन में घृणा निवास .
खुद अपने अस्तित्व पर,करे नहीं विश्वास..
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स्वार्थ और संकीर्णता ,घृणा मिलाकर तीन .
हठवादी बनता मनुज ,तर्क-कुतर्क प्रवीन ..
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जग आवर्ती दशमलब ,पूर्ण अंक है राम .
आदि अंत आभास हैं ,श्रृष्टि चले अविराम ..
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हर चहरे पर रिक्तता ,साधे बैठी मौन .
सन्नाटे की है व्यथा ,मुझे सुनेगा कौन ..
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शांत प्रतीक्षारत रहो,शब्द त्याग दो काश .
घृणा करो मत भूत से ,ना भविष्य से आस ..
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तिमिर ज्योति बन जाएगा ,जड़ता होगी नृत्य.
मौन कथ्य हो जाएगा ,सपने होंगे सत्य..
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ओ!अन्वेषी सत्य के ,तज दो भावावेश .
केवल पथ अज्ञान का,जाय ज्ञान के देश ..
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