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तेरे शूल-फूल सिर माथे

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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तेरे शूल-फूल सिर माथे

मैं चाहूँ मेरे सिर पर मेरे नभ का विस्तार रहे
मैं चाहूँ मेरे पगतल मेरी भू का आधार रहे
योग-भोग से विरत और रत बने कमलवत यह जीवन
सम्यक स्वर पर राग अनूठे एसा मधुर सितार रहे
पर मैं क्या हूँ चाह मेरी क्या ,
तू ही जाने तेरी बातें
तेरे शूल-फूल सिर माथे .तेरे शूल-फूल सिर माथे .१.

मन में त्वरा नयन में तन्द्रा भूल परायों अपनों को
नींद चैन दो पल पाऊँ किया हजारों जतनों को
अगर-तगर से प्राण जलाए साध सुवासित करूँ निकेत
साँझ देहली पर आमंत्रित किया रुपहले सपनों को
पर नयनों में रैन गई रे चादर की सलवटें हटाते
तेरे शूल-फूल सिर माथे .तेरे शूल-फूल सिर माथे .२.

फूल कूल चन्दन गिरि उपवन सबसे मुख यूँ मोड़ चली
सूरज छूने की अभिलाषा नेह धरा का तोड़ चली
आज हारकर खड़ा धरा पर पुनः जटायू जीवन का
रंग-रूप-रस-गंध -छुअन सब तन से नाता तोड़ चली
सूरज का उदयास्त रोज ही होता कल की शुक्र मनाते
तेरे शूल-फूल सिर माथे .तेरे शूल-फूल सिर माथे .३.

प्राणों में पतझर पलता है तन बसंत का विज्ञापन
नौ-दिन कोस अढ़ाई चलकर बैठ हाँफता है यौवन
रूंठे हुए मीत के जैसा रोज याद बचपन आया
भोर चला है कमर झुकाए साँझ मराली सी बनठन
धुप-छाँव में अर्थ-काममय चली जिन्दगी रोते-गाते
तेरे शूल-फूल सिर माथे .तेरे शूल-फूल सिर माथे .४.

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