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दीप हूँ,    मैं रात भर जलता रहूँगा।

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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जानता हूँ मैं नहीं हूँ अंशुमाली।
बल कहाँ इतना मिटा दूँ रात काली। 
विश्व तेरा नेह किंचित पा सका तो,
ले यही पाथेय मैं चलता रहूँगा।

दीप हूँ,   
मैं रात भर जलता रहूँगा।

मैं नहीं हूँ हंस मानस तीर का।
ज्ञान है ना नीर एवं छीर का।
किन्तु यदि विश्वास के मुक्ता मुझे दो,
बन अमर आशा ह्रदय पलता रहूँगा।

दीप हूँ,   
मैं रात भर जलता रहूँगा।

मैं न मलयज कि नवल आह्लाद दूँगा।
नरम झौंकों से मिटा अवसाद दूँगा।
साथ रहने का मुझे अधिकार देदो,
धार सेवा व्रत विजन झलता रहूँगा ।

दीप हूँ,   
मैं रात भर जलता रहूँगा।

ना हिमल ना श्यामघन चातुर्यमासी।
क्या मिटाऊँ तव तृषा तेरी उदासी।
विश्व सादर ले सको लो अंजुरी में,
एक लघु हिमखण्ड सा गलता रहूँगा।

दीप हूँ,   
मैं रात भर जलता रहूँगा।

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