Achyutam keshvam
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कितने दिन तरसे।
तब बादल बरसे।
चींटे नभ नाच रहे,
उग आये पर से।
ओठौं पर मुस्काने,
दिल में हैं फरसे।
बुलबुल ने गीत तजे,
बाजौं के डर से।
राम-सिया अब भी हैं,
निष्कासित घर से।
प्यासे ही हम लौटे,
सागर के दर से।
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