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मेरी आँखों के दर्पण में , उभरी थी तस्वीर तुम्हारी.

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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सूरज की वेदी पर जिस दिन धरा चंद्र ने भाँवर डाली.
धरा सुहागन हुई अमा की रात कटी फैली उजियाली.
उस उजियाली में ओ प्रियतम,
मेरी आँखों के दर्पण में ,
उभरी थी तस्वीर तुम्हारी.
यूँ तो केवल तीन बरस का ही तो परिचय हुआ हमारा
पर लगता है रही पुरानी बहुत पुरानी अपनी यारी.

सात दिवस की विभीषिका के जल थल भू पर चिह्न शेष थे.
महाकाल ने अभी-अभी तो स्वयं समेटे प्रलय केश थे.
एक बार फिर से प्राची से,
धरती का सौभाग्य उगा तो,
नील लोम वाली भेड़ों की अपने तन पर शाल लपेटे.
शतरूपा बनकर थी प्रकटी मेरे सम्मुख छवी तुम्हारी.
यूँ तो केवल तीन बरस का ही तो परिचय हुआ हमारा
पर लगता है रही पुरानी बहुत पुरानी अपनी यारी.

जल सिमटा हिम-नद-सागर में सप्त वरन धरती मुस्कानी.
मैने बाँधी पाग केसरिया तुम ओढ़े थीं चूनर धानी.
हिमल शिलाओं से प्रतिमायें ,
सागर के तट पर तस्वीरें,
इक दूजे की हमने-तुमने ही तो सबसे प्रथम रची थी.
ये एलोरा और अजंता अभी हाल की कृतियाँ सारी.
यूँ तो केवल तीन बरस का ही तो परिचय हुआ हमारा
पर लगता है रही पुरानी बहुत पुरानी अपनी यारी.

पहले पहल धरा पर उतरी छः ऋतुओं की अनुपपम डोली.
दहके लहके बहके चहके दो तन दो मन तम यूँ बोली.
मन में पीर पपीहे वाली,
बौराये हम आम्रकुंज से,
नादित हों बादल सम भू पर आओ इठलाये मोरों से.
गायन वादन नृत्य कलायें जग पाया कर नकल हमारी.
यूँ तो केवल तीन बरस का ही तो परिचय हुआ हमारा
पर लगता है रही पुरानी बहुत पुरानी अपनी यारी.

संस्कार वे तत्व बन गये जिनसे नयी पीढ़ियाँ सींची.
धर्मसेतु है कर्मपंथ है हमने जो रे खायें खींची.
जिज्ञासा से समाधान तक तुम्हें याद अपनी यात्रायें.
पहिये और आग की खोजे रामायण और वेद ऋचायें.
उपजी थीं क्या नहींबताओ अपनी भाव भूमि से प्यारी.
यूँ तो केवल तीन बरस का ही तो परिचय हुआ हमारा
पर लगता है रही पुरानी बहुत पुरानी अपनी यारी.

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