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मैं भारत हूँ मैंने विष भी सोम सुधा के संग पिया है

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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मुक्ति हेतु यूँ धार धर्म को अर्थ काम के संग जिया है .
मैं भारत हूँ मैंने विष भी सोम सुधा के संग पिया है .

अवरोधों को चूर्ण बनाती धाती क्षिप्रा मतवाली .
हरती पाप कलुष धरती के अंक समा नाले नाली .
हहराती -लहराती नदिया कहलाती गंगा मैया ,
नीचे झुक नीचों को अपना कर होती महिमावाली .
जो-जो संग लगा गंगा के उसको अपना अंग किया है .
मैं भारत हूँ मैंने विष भी सोम सुधा के संग पिया है .

यहाँ श्याम ने धेनु चराई वंशी यहीं बजाई रे .
गुंजन उर में धार हवाएं अभी तलक बौराई रे .
ढूँढ-ढूढ़ कर जग में हारा जब पाया तो क्या पाया ,
बैठ राधिका चरण चांपता तीन लोक का साईं रे .
इसी अवनितल पर मोहन ने रास राधिका संग किया है .
मैं भारत हूँ मैंने विष भी सोम सुधा के संग पिया है .

राज-पाट-सुत-दारा-रिश्ते-नाते-सारे त्याग चला .
फिर समाधि में लीन अहर्निश तप-ज्वाला में खूब जला .
त्याग-भोग द्वय तार अधिक ढीले या कसे नहीं होते ,
तब ही जीवन वीणा बजती बोध हुआ तो पता चला .
मध्यम मार्ग चुना गौतम ने चकित समूचा संघ किया है .
मैं भारत हूँ मैंने विष भी सोम सुधा के संग पिया है .

जैसे मथुरा काशी वैसे खजुराहो मेरी थाती है .
है स्नेह सभी में मेरा भिन्न-भिन्न दीपक बाती है .
लिखे रुक्मिणी या शकुंतला त्रेता में द्वापर कलियुग में ,
भाव सभी में एक निहित है केवल अलग-अलग पाती है .
क्या पछुआ क्या पुरवा रे जब उड़ा बसंती रंग दिया है .
मैं भारत हूँ मैंने विष भी सोम सुधा के संग पिया है .
-अच्युतम केशवम

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