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रजनी के तिमिरान्ध गर्भ में,एक नया सूरज पलता है

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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रश्मिरथी को लिए अरुण जब,
अस्तांचल में जा सो जाते .
सत्य-साध्य सब कर्म-विरत,
मानव मन के सपने हो जाते .
तब विशवास लिए मन में ,
नभ में नन्हां दीपक जलता है .
रजनी के तिमिरान्ध गर्भ में ,
एक नया सूरज पलता है .(१)

क्रान्ति बिगुल को बजा तिमिर से ,
जब वह महासमर कर जाता .
एक-एक कर हो अनेक ,नभ
नन्हें दीपों से भर जाता .
ज्योति-अस्त्र कर धरे तिमिर को ,
दलता है बढ़ता चलता है .
रजनी के तिमिरान्ध गर्भ में ,
एक नया सूरज पलता है .(२)

मैंने लाखों को हत होकर ,
अवनी पर गिरते देखा है .
किन्तु भोर से पूर्व समर से ,
पींठ नहीं फिरते देखा है .
विजय धर्म की ही होती है ,
पाप सदा कर ही मलता है .
रजनी के तिमिरान्ध गर्भ में ,
एक नया सूरज पलता है .(२)
अच्युतं केशवम

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