Achyutam keshvam
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पारतन्त्रय की दमन और शोषण की .
वह विभा गहन दुर्जन उलूक तोषण की .
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द्वितीया चन्द्र सरीखे तिमिर सघन में .
दल बढ़े विघ्न हिन्दी साहित्य गगन में .
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मजदूर कृषक स्त्री दरिद्र की पीड़ा .
मिटे ,मिलें अधिकार उठाया बीड़ा .
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बन गयी लेखनी शस्त्र क्रान्तिधर्मी का .
कथा क्षेत्र रण-अंगण रणकर्मी का .
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साहित्य नहीं है कर्म मनोरंजन का .
साहित्यिक का धर्म रूढ़ि-भंजन का .
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कलम नहीं कर कलम-कृपाण कहो रे .
पाखण्ड भित्तीयाँ बढ़कर आज ढहो रे .
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कर सके न कंटक हीन प्रगति के पथ को .
श्रेयस्कर तज चलो देह के रथ को .
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कथा-कथा में व्यथा यही अभिव्यक्तिमयी.
चली हवा परिवर्तन की अति शक्तिमयी .
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इन्द्रधनुष ले इंद्र उपन्यासों का .
ऋण चुकती करता भू को सांसों का .
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ज्ञान गवाक्ष खुले पड़े थे बंद .
हिन्दी नभ सस्मित विकसित प्रेमचन्द
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