Achyutam keshvam
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घिर उठा तम भूमितल पर
सूर्य सोया हार थककर
स्वर चुनौती के उठे कुछ
जल उठे सब दीप बनकर
लग रहा था मिट गया तम
नयन भू के हर्ष से नम
दीपतल में किन्तु वह चुपचाप
छिप गया ज्यों काटता अभिशाप
चुक गया सामर्थ्य का घृत
दीपकों के टूटते वृत
हाँफती बाती कहे बस ,
यही बारम्बार …………
है असम्भव सी तिमिर की हार
है असम्भव ही तिमिर की हार
–
रवि चला ले रश्मियों का जाल
तिमिर मीनों के लिए था काल
पूर्वीतट से लिए विश्वास
वह उछलकर फेंकता है जाल
पीठ करके अब समर से
भागता तम स्यात डर से
रूप छाया का लिए चुपचाप
घूमता जग में बिना पदचाप
झुक गया रवि द्वय प्रहर के बाद
बढ़ चला तम फिर लगाये घात
डूबता सूरज कहे बस,
यही बारम्बार ………….
है असम्भव सी तिमिर की हार .
है असम्भव ही तिमिर की हार
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