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सोम सुधा जगभर में बांटी

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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सपने का क्या है जो टूट गया .
सपना तो फिर भी सपना है.

समय दिखाता रहा अँगूठे .
राम गुसैंयाँ तुम भी झूँठे .
पाप हो गये दया से भारी ,
फिर तो नाम वृथा जपना है .

तज उपहास उपेक्षा दूजी .
मेरे पास रही क्या पूँजी .
कैसे कहूँ शत्रु मैं पर को ,
अपना कौन हुआ अपना है .

सोम सुधा जगभर में बांटी .
धरती की जंजीरें काटी.
फिर भी रहा अकिंचन मैं ही .
कंपना कभी कभी तपना है .
अच्युतं केशवम की कविता

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