Achyutam keshvam
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ठिठुरी सी ठंडी रातों में
बर्फीले झंझावातों में
बना हिमालय को निज आलय
खड़े हुए हैं
अड़े हुए हैं
संघर्षों में सीना ताने
स्वयं रुद्र हैं
वीरभद्र हैं
अरे असुर उच्छेदन के हित
देवराज ही लिए वज्र हैं
सिद्ध यशस्वी धीर वीर ये
धवल छीर-सागरवासी से
मौन तपस्वी कैलाशी से
नयनों में ये लिए ज्वाल हैं
कुलिश देह हैं
नौनिहाल हैं
लेकर प्राण हथेली पर ये
रखे हुए भारत का पानी
इनकी बलिदानी गाथाऐं
युगों-युगों से हैं लासानी
भारत माता के सपूत ये
फैला इनका यश ललाम है
इनके श्री चरणों में कवि का
बार-बार शतशः प्रणाम है।
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