Achyutam keshvam
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मुद्रा वरद द्वय हस्त सुशोभत,शूल व फूल पदम मन भावै।
ब्रह्मा की विष्णु की रुद्र की रूप जो,धर्म के रूप के आसन ध्यावै।
भाग बड़े हिमवान के कहिये, तात कहै जग मात बुलावै ।
डोलै जगत जाके भ्रू के विलास सों ,मैनवती ताकौं झूला झुलावै।
उषा प्रभाती सुनाय व सूरज,प्रात-सुकालिक आर्ति उतारै।
जोगिनी सी तप जोग की लक्ष्य जि, माया को भेद को विज्ञ विचारै।
पाय सरन इन चरनन की ,शेष नहीं कछु वेद उचारै।
ध्यावै सदा शुचि मात कुमरिका, ब्रह्म कम्डल पद्म जो धारै।
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