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घूम रहे हैं फन फैलाए देखो तक्षक राज-भवन में
ओ जनमेजय अब जुट जाएँ सर्प-यज्ञ के आयोजन में
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यह भारत है कौशल्या के राम घूमते हैं प्रांगण में
और कन्हैया ठुमक रहा है जसुदा मैया के आँगन में
माया के गौतम त्रिशला के वर्धमान की गंध पवन में
यहाँ मुरा के चन्द्रगुप्त की कीर्ति पताका नील गगन में
भारत माँ के नौनिहाल कोटिश बलिदानी लाल जहाँ पर
देशद्रोही षड्यंत्रकारीयों की न गलेगी दाल यहाँ पर
सर्प भस्म हों जलें सपोले यज्ञ धूम्र उड़ चले गगन में
ओ जनमेजय अब जुट जाएँ सर्प-यज्ञ के आयोजन में (१)
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ग्रह त्यागी हों राम-लखन फिर पंचवटी में कुटी बनाएं
शूर्पणखा का दर्प तोड़ दें खर-दूषण को धूल चटायें
युग दधीच फिर अस्थिदान दें और बृहस्पति मार्ग दिखाएँ
भर-भरकर अंजुलीपुटों में नव अगस्त्य सागर पी जाएँ
वज्रपाणी बन सिन्धु संतती असुरों की दुर्गति कर डाले
वृतासुर को धराशायी कर कालकेयों का वध कर डाले
यदि तक्षक को दे संरक्षण इन्द्रासन गिर पड़े अगन में
ओ जनमेजय अब जुट जाएँ सर्प-यज्ञ के आयोजन में (२)
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मन-मंथन से उठा हलाहल आज उसी की मसी बनाएं
लौह-लेखनी लेकर कर में अग्नि शब्द हम लिखते जाएँ
मारण मन्त्रों को उच्चारे उच्चाटन की बात छोड़ दे
टंकारो से काम न चलता पार्थ ब्रह्मशर ताक छोड़ दे
महाकाल के महाचाप की प्रत्यंचा पर चढ़े तीर हम
अँगडाई लेते युग बदले आज समय को चले चीर हम
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम गूँज उठे ललकार गगन में
ओ जनमेजय अब जुट जाएँ सर्प-यज्ञ के आयोजन में (३)
डिस्क्लेमर : उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी दावे या आंकड़ों की पुष्टि नहीं करता है।
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