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अनिर्णीत बहस

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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कुछ प्रश्न मन को मथ रहे हैं.
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१.क्या कमलेश तिवारी सम्विधान प्रदत्त अभिव्यक्ति -समानता-कला संस्कृति आदि की उस आजादी के दायरे में नहीं आता जो -मकबूल फ़िदा हुसैन ,असीम त्रिवेदी,कलबुर्गी ,आमिर खान,तीस्ता सीतलवाडा, आजम खान ,बुखारी ,रामचन्द्र गुहा ,इरफान हबीब आदि को प्राप्त है ?
२.क्या भारत में राम,कृष्ण,शिव,दुर्गा,९ सिख गुरु ,२४ तीर्थंकर,बुद्ध,गांधी,सुभाष ,शेखर,अम्बेडकर आदि भारतीय मूल के देवी -देवता महापुरुष ही लोकतंत्र के दायरे में आते हैं और उनकी आलोचना-निंदा -उन पर शोध समीक्षा,फिल्म -कार्टून निर्माण हो सकते हैं?
३,क्या गैर भारतीय मूल के देवी-देवता-महापुरुष लोकतंत्र -सम्विधान से ऊपर अनालोच्य -अनिन्दनीय -अनगैनी का अनगैना तिर्कुल्ला हैं ?
४.क्या वे भारतीय जो दुसरे भारतीय समाज से कोई छोटा -मोटा विग्रह,विवाद होते ही देश का नक्शा बदल देंगे,देश छोड़ जायेंगे,खून-खराबा हो जायेगा…आदि चिल्लाने लगते हैं.को नार्मल व्यवहार्य नागरिक माना जा सकता है?
५.क्या दुनियां की कोई सरकार किसी एसे ओवर सैन्सटीव नागरिक समुदाय जो जनसंख्या नियन्त्रण कार्यक्रम ,पोलियो उन्मूलन,सामुदायिक विकास ,बैंक व्यवस्था आदि हर चीज का विरोध करे और अपने लिए अलग कानून (प्रकारान्तर से सभी कानूनों से ऊपर)चाहे ,सरकारें उससे किस प्रकार निभाएं ?
६.यदि एक समूह की कट्टरता को आज मान्यकर दुर्जन तोषण न्याय किया जाता रहा तो क्या कल ये मामले नजीर बन कर दुसरे शांत समुदायों को उद्वेलित नहीं करेंगे ?
७.क्या हर मामले में बहुसंख्यक वर्ग को लांक्षित करना और सत्यासत्य की प्रवाह बिना किये अल्पसंख्यक की पक्षधरता बहुसंख्यक वर्ग को हिंसक राह पर जाने को विवश नहीं करेगी ?
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अंत में यह स्पष्ट करना जरूरी है कि मैं कमलेश तिवारी का न समर्थन करता हूँ न उसे हिन्दू हितैषी मानता हूँ पर उसका अपराध उसे रासुका लगाने या फांसी पर चढ़ाने लायक गम्भीर नहीं.इससे तो वह नेता बन जायेगा और तमाम कमलेश तिवारी खड़े होंगे .हम किस-किस को रासुका लगायेंगे .

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