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लोक में आलोक बिखरेगा और मेरा रूप निखरेगा .

Achyutam keshvam
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लोक में आलोक बिखरेगा .
और मेरा रूप निखरेगा .

मान या मत मान सैलानी .
फट नहीं सकता कभी पानी .
फेंक पत्थर फेंक फिकरे का .
लोक में आलोक बिखरेगा .
और मेरा रूप निखरेगा .

मैं जहर के तीर खाता हूँ .
पर अमिय के गीत गाता हूँ .
ले!तुझे ही श्रेय सिगरे का .
लोक में आलोक बिखरेगा .
और मेरा रूप निखरेगा .

संग सात्विक साधनाएं हैं .
बलवती शुभकामनाएं हैं.
खुल रहा है द्वार पिंजरे का .
लोक में आलोक बिखरेगा .
और मेरा रूप निखरेगा .

बात थी जलती हुई तीली .
मान कड़वी औषधी पीली .
मैं विषय था ख़ास जिकरे का .
लोक में आलोक बिखरेगा .
और मेरा रूप निखरेगा .

आचरण कम पर मुखर वाणी .
जिन्दगी के ये नहीं मानी .
शुभ श्रृजन है काम जिगरे का .
लोक में आलोक बिखरेगा .
और मेरा रूप निखरेगा .

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