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हाथ मँहदी पग महावर के नदी पहुँची द्वार सागर के

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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मत किसी को भी बताना ,
राज की यह बात .

वाटिका में क्या खिला पाटल .
हाय कैसी हो रहीं पागल .
नित-नवेली रँग-बिरंगी ,
तितलियों की जात .
मत किसी को भी बताना ,
राज की यह बात .

हाथ मँहदी पग महावर के .
नदी पहुँची द्वार सागर के .
अठखेलियाँ चलती रहीं ,
आज सारी रात .
मत किसी को भी बताना ,
राज की यह बात .

स्वप्न आया थी सुबह सोती .
सम्पुटित है सीप में मोती.
प्रिय तभी से हो रही हूँ ,
मैं प्रफुल्लित गात.
मत किसी को भी बताना ,
राज की यह बात .
अच्युतम की कविताएँ

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