Achyutam keshvam
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हैं आँखे अभ्यस्त तिमिर की और उजाले गड़ते हैं.
उल्लू के इंगित पर तोते दोष सूर्य पर मढ़ते हैं.
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बोटी एक प्रलोभन वाली फेंक सियासत देती है .
हम कुत्तों जैसे आपस में लड़ते और झगड़ते हैं.
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यूँ तो है आजाद कलम बस पेशा करना सीख गयी.
चारण विरुदावलियों को ही कविता कहकर पढ़ते हैं.
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लेखपाल जी दस फीसद में रफा-दफा सब कर देते.
पर कानूगो बीस फीसदी लेकर कलम रगड़ते हैं.
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राशन की दुकान के मालिक मुखिया जी के साले हैं.
बी.पी.एल.वाले जीजाजी बोल सीढीयाँ चढ़ते हैं.
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डी.एल.बीमा हेलमेट परमिट हो न हो फ़िक्र किसे.
धनतेरस है निकट दरोगा गाड़ी दौड़ पकड़ते हैं.
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जिन शाखों पर फूल खिले हैं झुकी-झुकी सकुचाई हैं.
किन्तु कटीले झाड़ महल्ले भर में फिरे अकड़ते हैं.
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रामरहीमों राधे माओं की रंगीन मिजाजी से .
रंग तिरंगे के तीनों बदरंग दिखाई देते हैं.
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