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एकदा नैमिषारण्ये … …

साहित्य-गढ़
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संसार के नैमिषारण्य में एकबार
कवि का ज्ञान खो गया
कवि हुआ थोड़ा-सा हैरान

संसार के नैमिषारण्य में एकबार
गुम हो गई कवि की बुद्धि
कवि का सिर चकराया
कवि रहने लगा कुछ-कुछ परेशान

आज इसी महावन में हेरा गया है
कवि का हृदय
पागल, बदहवास और बेचैन कवि
मणि खोए साँप की तरह
भटक रहा है वन-वन
अब वह रचनारंभ कर रहा है बार-बार
फिर बीच में
अटक रहा है

साधो! बहुत जलन कवि-मन में
साधो! आग लग इस वन में ।
*** *** ***

भागवत शरण झा ‘अनिमेष’
वरिष्ठ कर-सहायक
आयकर विभाग, पटना बिहार।

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