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लघु कथा
दयालु
शेयरों में आज उसने मोटी कमाई की थी । रास्ते मे सिंघाड़े सिर्फ 12 रूपये किलो की आवाज से रुक गया । वास्तव में सिंघाड़े उन दिनों 20 रूपये प्रति किलो के भाव मिल रहे थे।उसने जल्दी से मोल भाव कर कुल तीस रूपये में तीन किलो सिंघाड़े तुलवा लिए ।पास में ही उसे एक भाड़ भी नज़र आ गया । चूँकि सिंघाड़े कुछ पके हुए थे अत: उसने उन्हें भुनवाने का निश्चय किया। भाड़ गर्म नहीं था लेकिन उसने किसी आवश्यक कार्य से जल्दी जाने की कह कर जल्दी ही सिंघाड़े भुनवा लिए। भाड़ वाली और आस – पास बैठे उसके बच्चों की दशा देख कर उस दयालु व्यक्ति का जी पसीज गया । पूरे आधे घंटे वह यही सोचता रहा की इनके लिए क्या किया जा सकता है। कैसे लोगों को इनकी मदद के लिए प्रोत्साहित किया जाये। सरकारी तंत्र की निष्क्रियता को भी उसने जम कर कोसा । ” लो भय्या हो गये ” भाड़ वाली ने संतुष्ट भाव से कहा। कितने पैसे हुए , उसने प्रश्न किया । ” अरे भय्या आपके सिंघाड़े कितने थे में तो पूछना ही भूल गयी” भाड़ वाली ने प्रतिप्रश्न किया । दो किलो उसने सहज भाव से उत्तर दिया । 12 रूपये किलो के हिसाब से लेती हूँ , बड़ी महंगाई है ,बच्चों का पेट पालना भी मुश्किल हो जाता है । उसने पचास का नोट भाड़ वाली की तरफ बढ़ा दिया । खुले नहीं है क्या भय्या, मेरे पास तो सिर्फ दस और पांच के नोट हैं भाड़ वाली ने कहा । अरे तुम पच्चीस रूपये ले लो, व्यक्ति गर्व मिश्रित दया से झूमते हुए बोला । नहीं नहीं में दस रूपये किलो के हिसाब से कुल बीस रूपये ही ले लेती हूँ भाड़ वाली ने बड़े ही संतोष के साथ तीस रूपये वापिस कर दिए।
डॉ विनोद भारद्वाज
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