Menu
blogid : 1876 postid : 19

लो फिर आ गया आत्महत्याओं का मौसम (लेख)

मुझे भी कुछ कहना है
मुझे भी कुछ कहना है
  • 46 Posts
  • 1272 Comments

अभी बारहवी का परीक्षा परिणाम आये कुछ ही दिन हुए हैं. हमें अपने आस पास और साथ ही दूर दूर सभी जगह से एक ही तरह की खबरें सुनाई दे रही हैं. किसी छात्र ने परीक्षा में फेल होने के कारण फाँसी लगा ली या किसी छात्रा ने परीक्षा में कम नंबर आने के कारण जहर खा लिया. अगर हम कोई लोकल पेपर उठाये तो इस तरह की खबरों से पेपर भरा मिलेगा. पिछले कुछ सालों का आत्महत्याओं का डाटा देखेने पर पता चलता है कि ज्यादातर छात्रों ने आत्महत्या मई से लेकर जुलाई के महीनों में ही की हैं. क्यूँ? क्यूंकि इन्हीं महीनों में परीक्षाओं के परिणाम घोषित होते हैं.

आखिर क्यूँ बच्चे इतने अवसाद में हैं कि उन्हें भगवान कि दी हुई इस जिन्दंगी से भी प्यार नहीं रहा. या यूँ कहे की हम परिवार वालों की आकांक्षाये इतनी बढ गई है कि हम उन पर जरुरत से ज्यादा बोझ डाल रहे हैं, जिसे बच्चे सहन नहीं कर पा रहे हैं और टूट के बिखर जा रहे हैं.

आज सभी अभिभावक यहीं चाहते हैं कि उनका बेटा-बेटी डॉक्टर या इंजिनियर बने (अगर सभी डॉक्टर बन जायेंगे तो कौन किसका इलाज़ करेगा?). प्रतियोगिता कि दौड़ में हम इतने अंधे हो गए हैं कि बस हम सभी यहीं चाहते हैं कि हमारा बच्चा ही सभी परीक्षाओं में पहला आये. हम ये भी नहीं सोचते कि हमारे बच्चे क्या चाहते हैं, उसकी क्षमता क्या हैं या उसकी रूचि किसमे हैं. हम तो बस यहीं जानते हैं कि हमें उन्हें क्या बनाना है. ये अच्छी बात है कि हम उनका मार्गदर्शन करें, पर ये ठीक नहीं कि हम उन पर अपना निर्णय थोपे.

जब भी मैं किसी छात्र के आत्महत्या कि खबर पढ़ती हूँ तो मेरी आँखे भीग जाती हैं और मुझे श्रुति की याद आ जाती है. श्रुति मेरी सबसे अच्छी सहेली की बेटी थी. बहुत ही अच्छी कलाकार. पेंटिंग इतनी अच्छी करती थी कि बड़े-बड़े कलाकार भी शर्मा जाये. बिना सीखे ही वो कैसिओ पर कोई भी गाना बस सुनकर ही बजा लेती थी. पर उसके डॉक्टर मम्मी- पापा को इससे कोई मतलब नहीं था. वो तो अपनी इकलौती बेटी को बस डॉक्टर बनाना चाहते थे. और दो साल पहले ही वो अपने मम्मी-पापा के सपनों को पूरा न कर पाने के बोझ तले दबकर इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गई.

अब वो समय आ गया है कि हर माँ-बाप को बैठकर ये सोचना चाहिए कही हम बच्चों पर अपने सपने थोप तो नहीं रहे हैं और उन्हें आत्महत्या की इस राह में धकेल तो नहीं रहे हैं. हर बच्चे कि अलग-अलग क्षमता होती है, अलग रूचि होती है. आप पहले देखे कि आपके बच्चे कि रूचि किसमे है. उसे बढ़ावा दे और फिर देखे, जरुर आपका बच्चा उस क्षेत्र में अपना नाम कमाएगा और आपका नाम रौशन करेगा.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh