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तुम बिन कब तक रहूँ अधूरी (कविता)

मुझे भी कुछ कहना है
मुझे भी कुछ कहना है
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intezarजब से गये हो तुम मेरे सजना
याद नहीं दिन रात महीना

दिन सूना है रात है सूनी
दिल की हर एक बात है सूनी

बिंदियाँ रूठी रूठे कंगना
भूल गई अब सजना-संवरना

नैना तेरे दरस को तरसे
आँखे मेरी हरदम बरसे

आकर मेरी प्यास बुझा दो
मिलने की कुछ आस बंधा दो

आ भी जाओ अब तो सजना
मुश्किल हो गया तुम बिन जीना

अब न सही जाये ये दूरी
तुम बिन कब तक रहूँ अधूरी

तुम बिन कब तक रहूँ अधूरी

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