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केन्द्रीय सत्ता का रहनुमा उत्तर प्रदेश बाट जोह रहा है, अपने तारणहार की। जो उसे विकास पायदानों पर नई ऊंचाई प्रदान करे। क्या उसका यह इंतजार इस बार के विधानसभा में पूरा हो जाएगा? यह प्रश्न हर किसी की ज़ेहन में उठ रहा है। विकास की लालसा लगाए, प्रदेश की जनता आजादी के बाद से इंतजार कर रहीं हैं कि कोई आएगा, उसका भाग्य उदय होगा। प्रदेश में अमन-चैन की फ़सल लहलहाएगी।
इन उम्मीदों के बीच विधानसभा-2012 के चुनावों में पर्टियों के घोषणा पत्र उस चॉकलेट के समान लगते हैं जो बच्चे के रोने पर उसे थमा दी जाती है। इन घोषणा पत्रों को देखकर लगता है, प्रदेश में वर्षों से शासन कर रहीं इन पर्टियों को अभी तक जनता की आवश्यकताओं का भान ही नहीं है। कोई प्रदेश को 24 घंटे बिजली-पानी देने की बात कर रहा है तो कोई लैपटॉप और बेरोजगारी दूर करने की। जातिवाद की राजनीति इन पर्टियों के घोषणा पत्रों पर भी हावी दिखाई देती है। मतदाताओं को वह सब सुख सुविधाएं देनी की बात की जा रही जो उन्होंने सपने में नहीं सोची होगी। हद तो तब हो गई जब चुनावी वादों में आगे निकलने की होड़ ने इन सभी पर्टियों के घोषणा पत्रों को समान धरातल पर लाकर खड़ा कर दिया। अब मतदाता के आगे समस्या खड़ी हो गई कि वह किस पार्टी की चॉकलेट थामे। होना क्या था प्रदेश की जनता ने तय कर लिया हम भी इस बार इन चॉकलेटी वादों में कोई रूचि नहीं दिखाएंगें और उन्होंने अपनी मुठ्ठी इस तरह बंद कर ली कि चुनाव के दो चरण निपट जाने के बाद भी राजनेता और राजनीतिक चिंतक यह आभास नहीं कर पा रहे हैं कि यूपी का सिंहासन किसके हाथ लगेगा?
हद तो तब हो गई इसी चॉकलेटी घोषणा पत्र के नाम पर कांग्रेसी नेता कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए चुनावी आचार संहिता की धज्जियां उड़ा दीं और चुनाव आयुक्त ने राष्ट्रपति को दखल देने के लिए चिठ्ठी लिखी। मतदाताओं को रिझाने के लिए बेतुके और हास्यापद घोषणाओं से भरे इन चुनावी घोषणा पत्रों में दूरदृष्टि का अभाव साफ-साफ दृष्टिगोचर होता है। इन घोषणा पत्रों में सुनहरे चॉकलेटी सपनों के अलावा कुछ भी दिखाइ नहीं देता। इन सपनों में परिलाक्षित होता है पर्टियों की स्वार्थपरता और इनकी यथा स्थिति। ऐसे में अब तलक इन वादों के बार-बार टूटने से टूट चुकी प्रदेश की जनता किस पार्टी पर अपना भरोसा जातती है ये तो 6 मार्च के बाद ही पता चलेगा।
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