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मित्रों आप सभी जानते हैं ज्ञान असीमित है..परन्तु जीवन की कठिन परस्थितियों में फंसने के बाद, व्यक्तियों से धोखा खाने के बाद, अपने सगे संबंधियों की धनलोलुपता को देखने के बाद, और अपने सगे पुत्र-पुत्रियों के कुटिल व्यव्हार से..और भी अनेक विषम परिस्थितोयं में जब मन में अधीरता घर कर जाती है..तब मनुष्य के अन्दर अनेकों प्रश्न समुन्दर में आने वाले ज्वार-भाटे की भांति घुमड़ने लगते है. तब मनुष्य की असीमित ज्ञान के क्षेत्र में विचरण करने की छमता और जिज्ञासा दोनों ही क्षीण पड़ने लगती है. परन्तु जो व्यक्ति ऐसी परिस्थितिओं पर भी नियंत्रण प्राप्त कर ज्ञान की खोज में और अधिक उत्साह के साथ लग जाते हैं..वे इस सृष्टि में महापुरुष बनने की दिशा में अग्रसर हो जाते है. और युगों तक के लिए अमर हो जाते है. ऐसे व्यक्तियों को अपने पुत्रों या बंधू-बांधवों का धन-सम्पदा के लिए लड़ना नहीं सताता और न ही ऐसे व्यक्ति के लिए निराशा का कोई महत्त्व होता है और वे चिर आशावादिता को प्राप्त हो जाते है.
महत्वपूर्ण विषय ये है की इन निराश कर देने वाली परिस्थितियों पर नियंत्रण पाया कैसे जाये? जो लोग ऐसा नियंत्रण पाकर महापुरुषों की श्रेणी में आये उन्होंने क्या मार्ग अपनाया? क्या इस मोह माया वाली जिंदगी से मृत्यु या सन्यासी जीवन का वरण कर लिया जाये? क्या अपने सांसारिक कर्मो को त्याग देना ही इसका एक मात्र विकल्प है? क्या ये भी संभव है की सांसारिक जीवन को ही आगे बढ़ते हुए हम ऐसे दुखी कर देने वाले जीवन से मुक्ति पा सकते है? और सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आप दुःख किसे समझते हैं.? यदि हम परिश्रम करने से जो दर्द मिला उससे दुखी है. तो निश्चित है की हमारे दुःख मृत्यु के अतिरिक्त किसी भी अवस्था में समाप्त नहीं हो सकता. क्यूंकि ईश्वर ने सृष्टि का सृजन ही प्रत्येक जीव के कर्म करने के लिए किया है. इसीलिए बिना कर्म किये हमें फल तो प्राप्त हो ही नहीं सकता. अतः ऐसा दुःख तो हमारा भ्रम मात्र है. परन्तु यदि हमारे दुखों का कारण हमारी अकर्मण्यता नहीं अपितु कुछ और है. तब यह चिंतन का विषय है. तब यह हमारे अपने स्वयं के भीतर परिवर्तन लाने का विषय है यदि हम अपने अन्दर आवश्यक और उचित परिवर्तन ला पाते हैं तब हम अनेक मनुष्यों के जीवन में भी निश्चित तौर पर परिवर्तन लाने में समर्थ हो जायेंगे. महात्मा बुध, महात्मा गाँधी, मदर टेरेसा, स्वामी विवेकानंद आदि सभी महापुरष एक दिन में महापुरुष नहीं बने. न ही जन्मजात महापुरुष थे. और सबसे बड़ी बात यह है की जिन सवालों में आज हम अपने आप को घिरा हुआ पाते हैं, ये सभी उन सवालों से अपने प्रारंभिक जीवन के किसी न किसी क्षण में जूझ रहे थे. परन्तु ऐसा क्या घटा जो ये व्यक्ति महान आत्माए बन गए. आज हम अपने सगे संबंधियों की मृत्यु के पश्चात् विलाप करना तो दूर की बात अपितु दुखी होने का दिखावा मात्र करते हैं और इन महापुरुषों के संसार से विदा लेते समय समूचा मानव जगत विलाप कर रहा था. क्या था इन सब में इतना अद्भुत? जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ, इन सब में खास यह था कि ये सांसारिक दुखो को देख कर कुछ पलों के लिए निराश अवश्य हुए होंगे परन्तु शीघ्र ही ये नियंत्रित होकर ज्ञान की तरफ आकर्षित हुए और जुट गए मानवता की खोज में. सभी महान व्यक्तियों ने मानवता की खोज के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. और इसके साथ उन्होंने खोज निकला एक ऐसा अस्त्र जिससे न सिर्फ मानवता को जीवित रखा जा सकता बल्कि आत्मसंतोष भी पाया जा सकता है और मोह से छूटकारा भी. और इसी अस्त्र के प्रयोग से इन व्यक्तियों ने अपने आपको साधारण बनाया और विश्व ने इन्हें असाधारण. मित्रो इस अस्त्र का नाम है सत्य. सम्पूर्ण विश्व का कल्याण कर सकता है यह अस्त्र. सत्य से बढकर कोई शक्ति समूचे विश्व में विद्यमान नहीं है. परन्तु सत्य को धारण करने की शक्ति विश्व के अधिकांश मनुष्यों में नहीं है. सत्य ही है जो आपको मोह से छूटकारा दिला सकता है. सत्य आपको अपनी आत्मा के समीप लेकर जाता है और ज्ञान की तरफ आकर्षित करता है. मित्रों! आपके शारीर का एक मात्र सच्चा मित्र और सहारा आपकी आत्मा है..अतमा! जिसे आप अंतरात्मा, जीवात्मा, या फिर रूह तथा अनेक अन्य नामों से भी जानते हैं. जब हम अपने प्रश्नों का हल खोजते हैं तब हम अपनी आत्मा के समीप पहुँच जाते हैं. और हमारी आत्मा तब हमारे सांसारिक जीवन को त्याग देने के विचार को नकारकर हमे मूल्यपरक जीवन जीने का सन्देश देती है. हमारी आत्मा ही हमे सत्य के मार्ग पर अडिग रहने का मार्ग प्रदर्शित करती है और ज्ञान अर्जन करने का भाव जगती है. और जब हम सत्य के मार्ग पर चलते हैं तब हमारे मन में व्याप्त सब मोह समाप्त हो जातें हैं. और मोह समाप्ति के इस पथ पर हमारा साथ देती है हमारी असीम मित्र हमारी आत्मा. मित्रों सत्य के मार्ग पर चलते हुए हमें ज्ञात होता है की मोह त्याग देने का अर्थ मात्र संवेदनाएं खो देना नहीं है अपितु पक्षपात को त्याग देना है. यदि हम सवेदना त्याग दें और प्राणी मात्र के लिए हमारे हृदय में दया का अंश भी न बचे तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हमने मोह त्याग दिया बल्कि इसका अर्थ यह है की हम पशुता के प्रतिबिम्ब बन गए हैं. अत: मित्रों मोह त्यागना है परन्तु संवेदनाएं नहीं त्यागनी. और मोह त्यागने के लिए मृत्यु का वरण करना न सिर्फ सांसारिक सन्देश के खिलाफ है बल्कि आपकी अंतरात्मा पर भी एक प्रहार है. सांसारिक जीवन को त्याग कर सन्यासी जीवन में पहुंचना भी एक अच्छा उपाय नहीं है क्यूंकि शांति और सत्य की खोज के मार्ग पर सभी व्यक्ति सन्यासी जीवन जीने लग जायें तो इस संसार का विकास और उत्पत्ति दोनों ही शिथिल पड़ जायेंगे. अत: हमें इस जीवन को जीते हुए सत्य के मार्ग पर अग्रसर रहना चाहिए और अपने सांसारिक जीवन के सभी कृत्य और कर्त्तव्य दृढ़ता से निभाने चाहिए. यह दृढ़ता हमारे जीवन को न सिर्फ उच्च स्तर पर लेकर जाएगी बल्कि जीवन में शांति और संतोष की वृद्धी कर एक विलक्षण व्यक्तित्व भी प्रदान करेगी. जब आप सत्य के मार्ग पर चलते हुए ज्ञान उपार्जन करेंगे तब आप से बंटने वाला ज्ञान दुःख उत्पन करने वाली शक्तियों और साधनों का भी ह्रदय परिवर्तन कर देगा. और समस्त संसार शांति की ओर अग्रसर हो सकेगा और आप भी अपने मन की उलझनों से मुक्ति पा सकेंगे.
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