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वोट: लघु कथा

Awara Masiha
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घर के कोने में पड़े बूढ़े हो चुके पिताजी से रमेश ने कब से उनका हालचाल नहीं पहुंचा था, मगर आज पिता जी को उसने खुद अपने हाथो से नहलाया था और उनका धोती कुरता बदला था. आज बुढा भी खुश था की चलो कई सालो में सही मगर बेटे को अपने लाचार बाप की याद तो आई. उसके बाद खुद गोद में उठा कर वोट डलवाने लेकर गया और बूढ़े बाप को गोद में लिए लम्बी कतार में खड़ा रहा. आज रमेश का बूढा बाप मन ही मन में धन्य हो गया था. सुबह का भूला शाम को न सही रात को ही सही, आखिर वापस तो आ गया. आखिर उसके दिए संस्कार बेटे को सदमार्ग पर ले ही आये भले ही थोडा वक्त लग गया. बूढ़े को पक्का भरोसा था की अब रमेश उनकी रोज सेवा किया करेगा. बूढा आज अपने आप को लाचार महसूस नहीं कर रहा था..करीब एक घंटा कतार में खड़े रहने के बाद बूढ़े ने रमेश की गोद में रहते हुए ही वोट डाला. अब रमेश बूढ़े को लेकर सीधे सरपंच उम्मीदवार गजेन्द्र बाबु के पास पहुंचा और वही पर बूढ़े को किसी सामान की तरह रखते हुए गजेन्द्र बाबु से बोला..बाबु जी आपके कारण ही अपने बूढ़े बाप को गर्मी में दो घंटे लेकर खड़ा हुआ हूँ..१००० रूपए कम है इस काम के..थकान के साथ साथ बदबू भी आ रही थी..वो तो मैं नहलाकर लाया था वरना तो लाइन में खड़े खड़े ही बेहोश हो जाता..मैं तो बस दो हजार रूपए ही लूँगा.

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