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मित्रों! मैं आज आपको अपने मोहल्ले के अच्छन जी के बारे में बताता हूँ. हमारे पूरे मोहल्ले में अच्छन जी जैसा समझदार और सभ्य प्राणी कोई नहीं है. और उनके बच्चों के तो पांव पहले से ही सबने पालने में देख रखे है. विश्वास कीजिये पूरा परिवार बहुत ही समझदार और सभ्य है. और अच्छन जी की कमाई भी बहुत अच्छी है. अच्चन जी अपने काम से काम रखते हैं और किसी के पंगे में आज तक उन्होने कोई टांग नहीं अढ़ाई इसलिए पूरा परिवार आज सुखी है, खैर भगवान् सबको उनकी तरह अच्छी कमाई और अच्छी औलादें दे. मैं तो अच्छन जी के यहाँ जब भी जाता हूँ कुछ न कुछ शिक्षा ग्रहण करके ही आता हूँ. अभी कल ही की बात है मित्रों, उनके घर गया था शाम को उन्होंने जिद करके चाय पिलवा दी…मैं चाय पी ही रहा था की उसी समय उनका १२ वर्षीय बेटा उनसे पूछने लगा कि पापा ये शरीफ आदमी कौन होते हैं. उन्होने इतना अच्छा समझाया कि मेरे जैसा कम दिमाग वाला इन्सान भी समझ गया. शायद आप लोग भी उनकी बात से इत्तेफाक रखते हों. वह समझाने लगे की “बेटा शरीफ आदमी वो होते हैं जो किसी भी बिन मतलब की बात में नहीं उलझते. और अपने काम से काम रखते हैं. और किसी से न तो झगडा करते हैं और न ही किसी के झगडे में पड़ते हैं”……. “अच्छा पापा मैं समझ गया हमारा रिक्शे वाला शरीफ आदमी है क्यूंकि उसे रोज सड़क पर कोई भी गाड़ी या बाइक वाला गाली दे देता है मगर वो चुपचाप हमारे स्कूल तक रिक्शा चलता रहता है”….बेटे ने समझदारी दिखाते हुए अपनी समझदारी को कन्फर्म किया ”अरे अरे! तुम गलत समझ रहे हो बेटा, रिक्शे वाला कभी शरीफ आदमी नहीं होता. शरीफ आदमी वो होता जिससे कोई झगडा न करे या झगडा करने से डरे.” अच्छन जी ने इस बार और बेहतर ढंग से बताया. “ओ हो, मैं तो पापा जी लड्डन चौधरी को गुंडा समझा करता था मगर वो……..शरीफ आदमी है ये आज पता चला..पापा जी पता है आपको! उससे सब डरते हैं, कोई भी उससे नहीं लड़ता है..और वह जिससे चाहे उससे कुछ भी सामान ले लेता है.” बेटे ने अच्छन जी की बात सुनकर एक नया एग्जाम्पल दे डाला. “अरे भोलू बेटा तुम कहाँ से कहाँ बात को पहुंचा देते हो” लड्डू चौधरी शरीफ नहीं है वो गुंडा ही है…रुको मैं तुम्हे ठीक से समझा देता हूँ …जिन लोगों की लोग इज्जत करते हैं…उन्हें शरीफ आदमी कहते हैं…” अच्छा अच्छा ठीक है पापा मैं समझ गया…” भोलू खुश होते हुए बोला…”वैरी गुड बेटा“ अच्छन जी शाबाशी देते हुए बोले. तभी भोलू ने पूछ लिया “लेकिन पापा शरीफ आदमी तो मैं समझ गया बट ये नहीं समझा कि…. लोग इज्जत किन लोगों की करते हैं.” अच्चन जी ने इस बार सोच-विचार कर बताया “ बेटे लोग इज्जत उनकी करते है जिनके पास पैसा होता, जिनकी नौकरी में ज्यादा कमाई होती है या जो व्यापार से अधिक मुनाफा कमाते हैं.” “अच्छा पापा जी जो लोग अपने काम से काम रखते हैं, किसी से झगडा नहीं करते और पैसे वाले होते हैं तो क्या वे शरीफ आदमी होते हैं..?” “शाबाश बेटे ! शाबाश समझ गए तुम! अच्छन जी ने बेटे को शाबाशी देते हुए कहा. “ फिर तो हम भी शरीफ आदमी हुए” बेटे ने कन्फर्म किया. अच्छन जी ने भी हाँ में सहमती भर दी…“पापा जी हमारे मामा जी भी अमीर आदमी है मगर उनकी गहनों की दूकान पर तो कुछ दिन पहले गुंडे आ गए थे और उनसे रंगदारी न देने की वजह से झगडा कर लिया…क्या मामा शरीफ आदमी नहीं है? “नहीं नहीं बेटे ! ऐसा नहीं कहते! आजकल ज़माना ख़राब है …शरीफ आदमी को लोग चैन से जीने नहीं देते! वर्ना तुम्हारे मामा भी शरीफ आदमी है.” अच्छन जी ने बेटे को समझाया. और भोलू भी समझदार तो है ही वो भी समझ गया और बोला की “चलिए पापा जी कोई शरीफ आदमी हो या न हो हम तो कम से कम शरीफ हैं ही..क्यूंकि मामा जी कहने पर भी आप उनके साथ पुलिस स्टेशन नहीं गए..किसी के पंगे में भला हम क्यूँ पड़ें भला..आखिर हम शरीफ आदमी हैं” अच्छन जी सुनकर थोडा सा मुस्कुराये और मेरी तरफ देखा…मेरा भी चाय का कप खाली हो गया था इसलिए मैं उनसे इजाजत लेकर चला आया.
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