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हाँ वो शहर तुम्हारा था लेकिन तुम तो मेरी थी , हाँ वो गलियां तुम्हारी थी लेकिन कदम तो मेरे थे, हाँ वो आँगन तुम्हारा था लेकिन खुशिया तो मेरी थी ,और वो आंखे भी तो तुम्हारी थी लेकिन उसमे चेहरा तो मेरा ही था न , हाँ वो गुजारिश भी तो तुम्हारी ही थी , पर ये रब भी तो मेरा ही था ,, हाँ कैनवास पे बनी वो तस्वीरे तुम्हारी थी. लेकिन तुम्हे उतरने की वो कला तो मेरी ही थी !! हाँ हाँ वो अधूरे से ख्वाब तुम्हारे थे लेकिन उस अधूरेपन को भरने वाले वो रंग तो मेरे थे !! उफ्फ्फ्फ़ अहसासों की उस कहानी को बयाँ करू भी तो कैसे , न तो अब वो लफ्ज़ ही है मेरे और न अब वो होंठ है तेरे !!!!!!!!!!
चंद पंक्तियाँ ही तो थी तुम अधूरी सी , तुम्हे खुद से जोड़कर एक कहानी मैंने ही तो बनाया था,…… तुम्हे कोई हक नही था इस कहानी को यूँ अधुरा छोड़ जाने का, ना ना बिलकुल कोई हक नही था तुम्हे मेरी रफ़्तार से भागती हमारी इस कहानी को पॉवर ब्रेक लगाने का !!!
तुम्हारी वो चंद पंकितयां ही तो हमारी कहानी का एक आधार थी एक नीव थी , उन अधूरी सी पंकित्यो को अपनी हसरत रूपी लेखनी से एक कहानी का रूप दिया था मैंने ,,,, नही तुम्हे सच कोई हक नहीं है इस कहानी से सजे मेरे ख्वाबो के तालाब में छोटा सा भी कंकर मरने का !!!!!!!!!!!!!!!!!!!
निकोटीन वाले प्यार से !!!!!!!!!!
@SRB
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