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हम तो ठहरे परदेशी साथ क्या निभाएंगे… हम तो भाई आज यहाँ हैं तो कल वहां.. हमारा क्या? हम हैं “रमता जोगी, बहता पानी”. कब कौन सी गाड़ी पकड़ लें कोई ठिकाना ही नहीं. खैर जब यहाँ आ ही गए हैं तो सोचा सुस्ता ही लें….आईये कुछ बोल बतिया ही लें….. वैसे हमको बोलना-बतियाना नहीं आता. हम हैं मुहं-चोर….चुप्पा आदमी. हम को बतियाने का सलीका भी नहीं मालूम है. इसलिए तो हम कहते कुछ और हैं, सामने वाले को कुछ और ही समझ में आता है. बोलना नहीं आता तो सोचा कि कुछ लिख ही लें…. चूँकि हम घुमंतू प्राणी हैं तो यहाँ भी हम घूमते- फिरते आ गए. यहाँ आये तो यहाँ आते ही आँखें चुंधियाँ गयीं. हैपीडेंट खाए बिना ही दिमाग की बत्ती जल गयी. यहाँ तो बड़े-बड़े ज्ञानी लेखक,विचारक,विश्लेषक,कवि आदि बंधु-बांधव हैं. इनके बीच मेरी क्या विसात कि मैं कुछ भी लिखूं. मैं ठहरा मुरख-अज्ञानी. मन किया कि यहाँ से भाग ही चलें. यहाँ तो एक से एक धुरंधर पड़े हैं. कोई गुरु सामान है तो कोई पिता तुल्य है, कोई मित्र है. तो कोई बहन है.
फिर भी… जब हम यहाँ आ ही गए हैं,तो बिना कुछ लिखे जायेंगे तो नहीं ही. यदि चले गए तो मन की बातें मन में ही रह जाएँगी और मैं आप सब के आशीर्वाद से वंचित रह जाऊंगा. मुझे आप सब के आशीर्वाद की बहुत ही आवश्यकता है.
तो बात शुरू करते हैं, ममता जी के ‘सेक्सी’ होने से. उन्होंने ‘सेक्सी’ होने को उचित क्या ठहरा दिया कि हो-हल्ला मच गया. उनको उनके पद से हटाने कि मांग होने लगी. सब अपने-अपने विचार प्रस्तुत करने लगे जब कि हमारी विद्या बालन जी को कोई ऐतराज ही नहीं है. हमें भी ‘सेक्सी’ कहने का बुरा नहीं मानना चाहिए.भाई मेरे !!!! जब हम ‘सेक्सी’ कहने का बुरा मानेंगे या नंगे नहीं घूमेंगे तो आधुनिक कैसे कहलायेंगे. हम तो पिछ-लग्गू जाति के ठहरे. न हमारी कोई संस्कृति है, न हमारा कोई धर्म है न ही कोई संस्कार हैं. हम तो नक़ल करने वाले लोग हैं और आप सब हमें अपनी जाति को ही भुलाने कि बात कर रहे हैं. हम अपनी संस्कृति, अपने धर्म, अपने संस्कारों कि बात करेंगे तो क्या हम पिछड़े नहीं…. कहलायेंगे….. हमें तो आधुनिक बनना है. मॉडर्न कल्चर वाला प्राणी….. हम अब पीछे नहीं हटने वाले. अरे गनीमत रही कि मैडम ने बलात्कार को स्वीकार का लेने की बात नहीं की… उसका आनंद उठाने की बात नहीं की…. यदि ऐसा कह दिया होता तो पता नहीं क्या से क्या हो गया होता.
एक दिन चर्चा में सुना कि विधायक जी लोग विधान सभा में पोर्न फिल्म मोबाइल पर देख रहे थे. खड़ा हो गया बखेड़ा. मच गया हल्ला. यही आदत हमारी ख़राब है कि हम जरा-जरा सी बात पर हल्ला मचाने लगते हैं.अरे उनका मन नहीं है क्या… हम ही कौन दूध के धुले हैं. हम भी तो छुप-छुप के देखा करते हैं.पहले वीडियो कैसेट रखा करते थे, अब तो बहुत से साधन आ गए हैं. कहीं सीडी में रखतें हैं तो कहीं मोबाइल में.नहीं कुछ तो इन्टरने पे ही भिड़े रहते हैं. अब बताइए भी, सिर्फ इतनी सी बात पे विधायक जी लोगों को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी. यह न-इंसाफी नहीं है तो क्या है?
एक और बखेड़ा सुनने को मिला कि ‘गे’ पर देश में बहस चल रही है.सुना है कि सरकार भी इसके लिए कोई कानून बनवाना चाहती है,सुप्रीम कोर्ट में भी इस पर कोई बहस चल रही है. वह भी बेचारी सांप-छछूंदर वाली हाल में फंस गयी है. अब यह ‘गे’ क्या होता है…. हम समझ ही नहीं पाए. जब समझे तो हम अपना माथा पीट लिए……. झूठे का बवाल मचा है. बेमतलब का लोग अपना दिमाग खपा रहे हैं.कानून बनवाने कि क्या जरुरत है…. यह तो हमारे यहाँ न जाने कब से चला आ रहा है… अरे ढका-छिपा था, ढका ही रहने देते. पर्दा खोलने कि क्या जरुरत थी. हम तो अक्सर ‘लौंडों’ को अपने यहाँ कि पुलिया के नीचे देखा करते हैं………. अब सरकार भी करे तो क्या करे, वह तो हमें एडवांस बनाना चाहती है और हम हैं कि वही पुरानी ‘दकियानूशी’ बातें ले कर पिले पड़े हैं.
खैर………… इन सब चीजों से हमें क्या. बस आप सब अपनी कृपा-दृष्टि बनाये रखें गे. हम यहाँ आये हैं तो कुछ दिन ठहर कर ज्ञान का रस पी ही लें. बहुत दिन तक भटकते रहे हैं अज्ञानता के अन्धकार में…..
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