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ऐसी होली न देखि अभी तक, जिया करे धका-धक्…………
हाँ भईया जागरण-जंक्शन पर ई विद्वानों की होली देख कर हम तो दंग रह गए…
आनंद आ गया…ऐसी होली तो हम पहली बार देखे…
तरह-तरह के रंग देखने को मिले.सच में,जियरा में धक्-धक् होने लगा…….
दिव्य अनुभूति हुई है हमें… मन तो भईया गद-गद हो गया….
हमारे आदरणीय श्री शशिभूषण जी होली की शुभ-कामनाओं के साथ ऐसा जादू लेकर आये कि हमारे आदरणीय श्री जवाहर लाल जी चिल्ला उठे “अद्भुत,अद्भुत,अद्भुत”…. उन पर होली का ऐसा ‘खुमार’ चढ़ा कि महा-मूर्ख सम्मलेन का आयोजन ही करा दिया….और सबको मंच पर ला कर खड़ा कर दिया…..
हमारे डा. सूर्या बाली भईया अब कहाँ मानने वाले. उन्होंने ऐसा रंग उड़ाया कि पूरा धमाल ही मच गया….. और हमारे आदरणीय कृष्ण श्री जी का नगाड़ा बज उठा…
एक तरफ हमारे आदरणीय गुरु जी श्री प्रदीप कुशवाहा जी भ्रष्ट मुनि की आरती गा कर रंग बिखेर रहे थे तो कहीं आदरणीय अलका गुप्ता जी ‘सद्भावनाओं के गुलाल’ से रंग बरसा रहीं थीं…..
आदरणीय निशा मित्तल जी अपने आशीर्वचनों से हमें तृप्त कर रहीं थीं…., दीप्ती जी अपने हाथ में ‘स्नेह के अबीर से’ भरी पिचकारी से रंग बिखेर रहीं थीं….और तो और श्रीमती पुष्पा पाण्डेय जी होली विशेषांक ही ले कर चलीं आयीं….यमुना जी मर्यादा का पाठ पढ़ाती हुई नज़र आयीं…. शालिनी शर्मा जी पर ऐसा रंग चढ़ा कि ‘होली के दिन मन उड़त जाये उड़त जाये’… गुनगुनाये जा रहीं थीं… और रचना वर्मा जी होली में ठिठोली करती नज़र आयीं… मनु जी पूछ-पूछ कर रंग लगा रहीं थीं ‘ भईया कौन सा रंग लगायें’ . हमको लगता है कुछ कन्फ्यूज हो गयीं थीं…. मीनू जी, तमन्ना जी, सोनम जी दूर से ही ‘लुत्फ़’ उठा रहीं थीं….मनीषा जी ऐसे ही लाल-पीली हुई जा रहीं थीं…
डा. राजेंद्र तेला जी ‘रंग में भंग न मिलाओ’ का सन्देश दे रहे थे तो हमारे अनिल कुमार ‘अलीन’ भईया भांग ही घोटे जा रहे थे… उन पर ऐसा रंग चढ़ा कि बेचारे गोरिया के सपने में ही डूब गए… ऐसा डूबे कि होश ही नहीं.. गाये जा रहे थे ” तोहरे सपनवा में डूबल रहिलें, तोहर किरिये प्यार तोहसे करीं ले….अब हमारे चन्दन राज भईया से भी नहीं रहा गया, ‘अमवां पर कोइलिया’ को गवाने लगे… और अनूप सिंह रावत जी गुजिया,नमकपारे,शक्करपारे का आनंद उठाने लगे….
हमारे श्री रक्ताले साहब ‘फागुन,शिशिर और वसंत’ की चर्चा में मशगूल हुए…. आदरणीय पंडित श्री आर.के. राय जी ने शास्त्र-सम्मत विधि से होली मनाने का ज्ञान प्रदान किया….. तब तक डा. नवीन जोशी जी ‘होली मानाने के देशी टिप्स ले कर आ गए… पंडित विनोद चौबे जी ने तो ‘कौन किस रंग से खेले होली’ इसका ही ज्ञान प्रदान कर दिया…
हमारे संतोष भईया होली का गिफ्ट लिए दहाड़े जा रहे थे और दूर खड़े हमारे आनंद प्रवीन भईया मंद-मंद मुस्करा रहे थे…. राकेश जी राष्ट्र-गान का फगुआ गए जा रहे थे… हमारे आचार्य जी नितीश और मोदी में कुश्ती कराये जा रहे थे…….
कुमार सौरभ भईया ने होली को तो बहुत ही रंगीन किया, हमारे कुमार गौरव भईया कहीं नज़र नहीं आये… यह खटक गया. लेकिन हमारे जलालुद्दीन भाई होली के रंग में सराबोर नज़र आये….
विवेक जी हरा रंग लगाते दिखे तो प्रोफ़ेसर साहब ‘होली के मुक्तक’ गाते दिखे…..और श्री सुरेन्द्र शुक्ल जी प्रेम के रंग में नहाते दिखे…..
अरे.. हमारे चातक जी कहाँ हैं…वह तो ‘राजनीति और जतिनीति’ की ही उलझन में फंस गए हैं….जितने लोग उतने रंग. किस-किस का नाम लें. हम तो भईया नाम लेते-लेते थक गए…..ऐसी होली खेल कर हम तो धन्य हो गए … ..
आकाश भईया ! आप काहें रंगों के इस त्यौहार में फीके-फीके हैं……..
वैसे हम भी यहाँ हिट हो गए, विद्वानों के बीच में फिट हो गए…… सब हमारे आदरणीय श्री शशिभूषण जी का आशीर्वाद है….
लिखना कुछ और था, लिख गए कुछ और…कहा-सुना माफ़…. भूल-चूक लेनी देनी…..
फिर मिलेंगे….
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