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तू मायके मत जइयो….. मत जईओ, मेरी…. चिल्लाता रहा … उसके सामने गिडगिडाता रहा…लाख मिन्नतें की….चिरौरी की…. हद तो तब हो गयी जब उस बेचारे ने उसके पांव पर अपनी नाक तक रगड़ डाली….रुक जाने की विनती करता रहा…लेकिन वह नहीं रुकी… उसको तो जाना ही था… और आखिर वह चली ही गयी…. अब वह ज़नाब दर्द भरे नगमें गाते फिर रहे हैं…. यह सावन सूखा है लेकिन उनकी आँखें बरस रही हैं… हाय..ये तड़प…उनकी तन्हाई का ये आलम…
ऐ ! मेरे सपनों की शहजादी,
क्यूँ गयी तू मुझे छोड़ कर.
ज़रा भी तरस न आई तुझे,
मेरे दर्द, मेरे आसुओं, मेरी तड़प पर .
यह वाकया है… मेरे अज़ीज़ दोस्त की जिंदगी का.. जिसकी अभी नयी-नयी शादी हुयी है … बीबी को अपने घर लाए हुए दस दिन भी नहीं बीते थे कि बीबी के मायके वाले, विदाई का निवेदन लेकर मेरे दोस्त के घर आ पहुंचे. मेरे दोस्त के न चाहने के बावजूद भी उनके माता-पिता ने विदाई करने की हामी भर दी. ये बेचारे हाथ मलते रह गए. और बीबी मायके चली गयी. रुकती भी कैसे…मुफ्त में थोड़े ही आई थी….वैसे भी पहली दफा ससुराल से मायके जाना था…ऐसे सुनहरे मौके को कैसे छोड़ देती…
मेरे दोस्त हैरान…परेशान…अब ज़नाब को मेरी याद आई, आ गए मेरे पास…. अपनी दर्द भरी दास्ताँ सुनाने लगे…. लगे अपना हाल-ए-दिल बयां करने…..कहने लगे उसके बिना दिल नहीं लगता..फोन से बात करने पर जी ही नहीं भरता…रोज-रोज ससुराल जाया भी नहीं जा सकता … वैसे ज़नाब अभी नौ दिन वही से रह कर आ रहे हैं…लेकिन उनकी इस बेसब्री का क्या इलाज करूँ….
मैंने भी उनके दर्द पर थोड़ी सी मरहम लगाने की कोशिश की….उनको तसल्ली देता रहा…दुनियादारी समझता रहा…उनकी हौसलाफजाई करता रहा…वे कवितायेँ लिखा करते हैं… सो मैंने कहा आ जाओ, अपने पुराने हमख्यालों के बीच…आओ फिर से वही पुरानी महफ़िल जमाई जाये… कुछ शानदार सी कविता लिखो, तुम तो कविता लिखने में ‘प्रवीण’ हो…तुम्हारी कविताओं को पढ़ कर ‘आनंद’ आ जाता है…तुम ये हो…तुम वो हो…लेकिन वही ढाक के तीन पात….कुछ असर ही नहीं पड़ा.. बस अपना ही राग अलापे जा रहे थे… उसकी याद में कुछ यूँ बुदबुदाये जा रहे थे….
क्या कहूँ.. तुमसे मैं कैसे जी रहा हूँ
दर्द-ए-जुदाई का ज़हर पी रहा हूँ
धीरे-धीरे तेरी चाह में मिट रही है जिंदगी
तेरी यादों के सहारे अब तो कट रही है जिंदगी
तन्हा-तन्हा हूँ मैं तेरे जाने के बाद
बढ़ जाता है दर्दे दिल तेरी याद आने के बाद
न जाने कैसे-कैसे सितम सह रही है जिंदगी
तेरी यादों के सहारे अब तो कट रही है जिंदगी
हाल- ए-दिल मैं अपना तुझको सुनाऊँ कैसे
जी रहा हूँ किस तरह तुझको बताऊँ कैसे
दुनिया से दूर हो कर सिमट गयी है जिंदगी
तेरी यादों के सहारे अब तो कट रही है जिंदगी
ये बता दो मुझे कब तलक आओगे तुम
अब तो इतना मुझको न तड़पाओ तुम
तेरे बिना मेरी अधूरी है जिंदगी
तेरी यादों के सहारे अब तो कट रही है जिंदगी
उफ़ ये दर्द…ज़ालिम जाने का नाम ही नहीं लेता….ये घाव तो नासूर ही बनता जा रहा है…
शादी के वक्त तो मुझ पंडित को भूल ही गए थे. न्योता देना तो दूर…. मुझे खबर ही नहीं लगने दी कि उनकी शादी हो रही है… मुझे क्या…इस मंच के अधिकांश लोगों को पता नहीं चला… आखिर एक जिगरी दोस्त के मार्फ़त पता चल ही गया..उन्होंने मुझसे कहा भी कि यार की शादी है कुछ बधाई सन्देश पोस्ट कर दो. लेकिन ये मेरी गुस्ताखी…मैंने उनके आदेश की अवहेलना कर दी… जान-बूझ कर की…जब न्योता ही नहीं तो कैसी बधाई…. ये तो वही हुआ ‘ बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’….वैसे भी पंडित के पेट के अंदर जब तक कुछ नहीं जाता, तब तक कुछ बाहर भी नहीं निकलता…
खैर… .ज़नाब को मेरी याद आई…मैंने भी सोचा बधाई वाली पोस्ट न सही, उनकी दर्द भरी दास्ताँ को आप सब के सामने रख ही दूं…आखिर मित्र ही कैसा… जो तकलीफ में साथ न दे….
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