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दोस्ती में साजिश!

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ऐ दोस्त तेरी दोस्ती में सब छुपाता आ गया
मेरे लिए दुश्वारियां परेशानियां साजिश किये
वो कुछ भी ना कर पायेगा मैं फिर बताता आ गया।
साजिश करे मैं जाउं फंस दुख हो उसे मुझे देख हस
वो चाहता है द्वन्द हो आंखों में कुहरे का धुन्ध हो
पर सत्य का सूरज तो कुहरे को मिटाता आ गया।
उसको गुमां है पैसे का है और अपने जैसे का
मंदिर में जोड़े हाथ वो ना दे गरीब का साथ वो
देख भिक्षुक हाथ जोड़े कि विधाता आ गया।
मुंह पे बोले ऐसा लगता है बड़ा हमदर्द वो
देकर भाषण जैसे नेता दूर करता दर्द वो
दूर से सुन बात उसकी खिलखिलाता आ गया।
कहता है कि हम तो चाहें आप भी आगे बढ़ो
हम पी एच डी कर रहे है आप भी ऐसे पढ़ो
मांगू तो ना दे किताबें और पढ़ाता आ गया।
मेरे मुंह पर मेरी वाली और उसकी तरफदारी
हवस अपनी मिटाने को ना देखता वो रिश्तेदारी
बनना अवसरवादी कैसे वो बताता आ गया।
दूसरे तो छोटे है वो पेट निकले मोटे हैं
उनका सिक्का खरा सोना बाकी तो सब खोटे है
उपब्धियां ट्रेनों बसों में वो गिनाता आ गया।
जब कोई मुश्किल हुई सुनकर मैं पहुंचा दौड़कर
सोचे करे बरबाद मुझको समय रहते तोड़़कर
था बुझाने का हुनर उसमें मगर आग फिर भी वो लगाता आ गया।
दोस्ती पर उसके मेरे दोस्त सब अफसोस कर
बैठे सड़़कों के किनारे अपने मन को कोस कर
देखकर आफत मेरी वो खिलखिलाता आ गया।
वो है कहता दूर हूं क्या आग घर की बुझाउंगा
नासमझ उसे नापता मैं सुन के दौड़ा आउंगा
अपना पराया वक्त ये हमको बताता आ गया।
दोस्ती का दोस्त मेरे क्या यही अन्जाम है
दोस्त बनकर हमको डसता हम पर ही इल्जाम है
जो हुआ अच्छा हुआ मैं गुनगुनाता आ गया।
कोई ना होता बुरा ये सब समय का खेल है
अब हुआ ‘एहसास’ की ये जिन्दगी की रेल है
बैर रक्खूं मैं न उससे सब भुलाता आ गया।
-अजय एहसास

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