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तन्हाइयां (कविता)

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शीर्षक- तन्हाइयां

चाहूं मैं तुम साथ हो, जब पास हो तन्हाइयां
कोई भी न साथ दे तब साथ हो तन्हाइयां
मेरी हस्ती देख करके सब बिषैले हो गये
हम जहां पहुंचे वहां कितने झमेले हो गये
दुनिया के मेले मे देखो हम अकेले हो गये
पल में ही मिट जाती चाहें कितनी हों अच्छाइयां
चाहूं मैं तुम साथ हो, जब पास हो तन्हाइयां।
जिनकी नजरों मे मिलाकर नजरें दिल तक आ गये
आसमानों सा दिलो दिमाग पर भी छा गये
खूबियां तो कुछ न थी मालूम कैसे भा गये
मोड़ते अब नजरें मेरी देखकर परछाइयां
चाहूं मैं तुम साथ हो, जब पास हो तन्हाइयां।
कल तलक जो साथ रहते अब न करते बात है
जब गमों का दौर आये कोई न दे साथ है
मेरे सपने तोड़ने में पहला उनका हाथ है
ख्वाबों को यूं भूलकर अब देख लो सच्चाइयां
चाहूं मैं तुम साथ हो, जब पास हो तन्हाइयां।
सुबह से कब शाम हो जब होते थे बातों के पल
रात की वीरानियों में सोचते यादों के पल
हाथ मे जो हाथ ले करते थे वो वादों के पल
थे भरे पूरे चहकते आज है वीरानियां
चाहूं मैं तुम साथ हो, जब पास हो तन्हाइयां।
रीति ये दुनिया की है मिलना बिछुड़ना जीना मरना
क्या हुआ जो जीवनसाथी का हुआ दुनिया से चलना
सब खुदा करता है तेरे वश मे न है कुछ भी करना
सोचूं अब ‘एहसास’ कैसी कर रहा नादानियां
चाहूं मैं तुम साथ हो, जब पास हो तन्हाइयां।

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