किस्सा वो प्यार का रचना Just another Jagranjunction Blogs Sites site
अब तो पुराना हो गया वो किस्सा प्यार का
कोई यार दूसरा हुआ अब मेरे यार का
चलती थी जो बिखेरते राहों में खुशबुएं
कोई पता बता दे मेरे उस बहार का
अब तो पुराना हो गया वो किस्सा प्यार का ।।
बस्ता लिये जो घर से पढ़ाई को निकलते
हो दोस्तों से दूर उनके पीछे थे चलते
वो सिर मुड़ा के देखना और मुस्कुरा देना
जैसे हो कुमुदनी कोई भौरों’ पे मचलते
लोगों से सुना ये निशान-ए-इजहार का
अब तो पुराना हो गया वो किस्सा प्यार का ।।
कुछ अन्तराल मिलता जो स्कूल में हमें
नजरे हटा किताब से थे देखते उन्हें
नजरें घुमा के करते थे हम दूसरी तरफ
नैनो से बात करते न कोई देख ले हमें
अनुभूति बेहतरीन था उस नैन – चार का
अब तो पुराना हो गया वो किस्सा प्यार का ।।
जिस दिन भी वो स्कूल में पढ़ने नहीं आती
उस दिन तो याद उसकी मेरे दिल से न जाती
कापी कलम किताब चाहे ब्लैकबोर्ड हो
कोई न ऐसी जगह, नजर वो नही आती
कैसे बताता हाल दिले बेकरार का
अब तो पुराना हो गया वो किस्सा प्यार का ।।
कुछ भी पता चला नहीं कि कब बड़े हुए
कितने ही बरस बीते है हमको लड़े हुए
लड़ने लगे हैं बच्चे करते प्यार भी है वो
उसकी तो शादी हो गई हम है पड़े हुए
बच्चा सयाना हो गया अब मेरे यार का
अब तो पुराना हो गया वो किस्सा प्यार का ।।
कब बीत जाता बचपन बीत जाती जवानी
सोचूं जो वक्त मन में तो होती है हैरानी
अब सोचने पछताने से कुछ भी नहीं होगा
उसे झेलना पड़ेगा किया जो भी मनमानी
‘एहसास’ हो रहा है समय के प्रहार का
अब तो पुराना हो गया वो किस्सा प्यार का ।।
– अजय एहसास
सुलेमपुर परसावां
अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)
डिस्क्लेमर : उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी भी दावे या आंकड़े का समर्थन नहीं करता है।
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