रचना
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कभी तन्हाइयों में ख्वाब पलते उनका देखा है।
कभी रातों को नींदो में भी चलते उनको देखा है।
कभी तो देख कर परछाइयों में उसको दिल खुश था
शाम हो जाते ही परछाई ढलते उनका देखा है।
अभी जो दर्द से बीमार लेटे चारपाई पर
तेरा दीदार करने को टहलते उनका देखा है।
करे आवाज़ धक धक की मगर अब शान्त बैठा है
तुम्ही को देखते ही दिल मचलते उनका देखा है।
जो हमसे थे खफा और बात तक हमसे नहीं करते
जलाया प्रेम की बाती पिघलते उनको देखा है।
जो हमसे दूर रहते थे कभी नाराज़ थे हमसे
शमा के साथ परवाने सा जलते उनको देखा है।
भरे थे हाथ दोनों जिनके दौलत और शोहरत से
स्वयं को अब छुपाकर हाथ मलते उनको देखा है।
-अजय एहसास
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