हर तरफ मौत और खौफ का ही डेरा है।
बीन बस आज बजाता है वो दिखावे का,
आज साँपों से स्वयं मिल गया सपेरा है ।
ख्वाब महलों का देख जुल्म पर कदम रखा ,
छुआ तो देखा कि दलदल ये बहुत गहरा है ।
हमने इन्सान को इन्सा समझ के प्यार किया ,
मगर ये भूलें कि इन्सा बदलता चेहरा है ।
सोचें हम भी रहेंगे दिल में किसी के यारों,
मगर दिलों में यहाँ नफरतों का पहरा है ।
लुटा दी जिसके वास्ते खुशियां अपनी ,
मेरी खुशियों का वही एक बस लुटेरा है ।
देखकर देर बहुत सो गया ‘एहसास ‘ आज,
उठो जागो तो जब जागो तभी सबेरा है ।
– अजय एहसास
सुलेमपुर परसावां
अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)
मो०- 9889828588
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