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आज के अखबारों की सुर्ख़ियों में एक नज़र डालने पर मुझे फ्रंट पेज पर एक शीर्षक “देश के ८०% इंजीनियर अयोग्य” दिखाई दिया.
इंजीनियर या डाक्टर या फिर वैज्ञानिक योग्य कैसे हो सकते हैं जब इन सब में शामिल होने के लिए होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में प्राप्तांक प्रतिशत की बाध्यता होती है?
गौरतलब है कि आईआईटी पीएमटी की परीक्षा में शामिल होने के लिए इंटरमीडिएट में ६०% से ऊपर का प्राप्तांक अनिवार्य है,ऐसे में कई विद्यार्थी नक़ल का जुगाड़ लग सकने वाले स्कूलों में दाखिला लेते हैं.ये विद्यालय ऐसे होते हैं जहाँ पर नक़ल की पूरी सुविधा उपलब्ध होती है.
अब चूंकि विद्यार्थी ने नक़ल वाले स्कूल में प्रवेश ले लिया है तो उसे पढाई कि आवश्यकता महसूस नहीं होती,परन्तु परीक्षा में उसके ७०-७५% अंक हते हैं.इस तरह से वो तो इंट्रेंस एक्जाम के लिए योग्य हो जाते हैं जबकि कई विद्यार्थी जो रात दिन परिश्रम करके परीक्षा में ६०% या उससे कम अंक ही प्राप्त कर पाते हैं,वो इन परीक्षाओं से वंचित ही रह जाते हैं क्योकि उनके पास न्यूनतम प्रतिशत नहीं होता.
इसी व्यवस्था की देन है कि कई अभिभावक स्वयं अपने बच्चे की पढाई से ज्यादा उसके नक़ल करने का जुगाड़ ही खोजते हैं क्योंकि उन्हें मालूम होता है कि प्रतिशत के बिना कुछ भी नहीं होगा.
कितने अभिभावक तो ऐसे हैं जो परीक्षा के दिन आफिस से छुट्टी लेकर अपने बच्चे की परीक्षा में नक़ल करवाने जाते हैं.
अब स्कूल boards की बात
आईसीएससी board की अंकन पद्धति कुछ इस प्रकार कि है कि वहां से किसी भी विद्यार्थी के द्वितीय श्रेणी आने की सम्भावना ही नहीं होती.
कुल मिलकर मुझे बस यही कहना है कि इंजीनियरिंग,मेडिकल परीक्षाओं से प्रतिशत की बाध्यता समाप्त की जानी चाहिए जिससे कि उन विद्यार्थियों को भी अवसर मिल सके जो किन्ही भी कारणों से कम प्रतिशत ही प्राप्त कर पाएं हैं परन्तु उनके पास पर्याप्त ज्ञान है.
चाहे भले ही इसके लिए कठिन प्रवेश परीक्षा करानी पड़े
तो ही योग्य इंजीनियर या डाक्टर मिलेंगे.
क्योंकि प्रतिशत कि बाध्यता का परिणाम अभी कुछ दिन पहले मैंने यूनियन बैंक आफ इंडिया की बस्ती शाखा में २२ अक्टूबर को देखा था
वहां पर सभी लोग कम से कम ११ बजे से लगे हुए थे बाद में काउंटर पर पहुचने पर पता चला कि वहां पर एक जगह से कैश डिपोसिट करने के लिए नंबर लेना पड़ता है.इतने में लगभग साढ़े ग्यारह बज चुके थे,
काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने लगभग ११.५० पर ही काउंटर बंद कर दिया,लोगों ने नम्बर लगाने वाले व्यक्ति से बात कि तो वो सीधे धमकी देने लगा कि बैंक के अन्दर ढंग से बात करो वरना सही कर दूंगा,लगभग यही रुख मेनेजर का भी था,
यहाँ मैं ये भी बता दूं कि अन्य शाखाओं में डिपोसिट काउंटर के अलावा कही और नहीं जाना पड़ता.
क्या ये उन लोगों की योग्यता पर प्रश्नचिह्न नहीं हैं जो इन बैंकों के लिए भारती इंटरविउ लेते हैं.कि क्या देखा उन्होंने उस व्यक्ति के अन्दर?या फिर मोटी रिश्वत ने कुछ देखने नहीं दिया
अगर प्रतिशत कि बाध्यता न होती तो शायद उस पद पर कोई योग्य व्यक्ति होता और आम जनता का सहयोग करता .
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