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अभी हाल में सरकार द्वारा डीजल की कीमतों में 5 रूपये की वृद्धि की गयी है, और एलपीजी सिलेंडरों की संख्या 6 की गयी है
जबकि पेट्रोल की कीमतों में कोई वृद्धि नहीं की गयी.
ऐसा क्यों.
अक्सर मैंने कई कारों को सड़क पर चालू हालत में देखा है वो भी सिर्फ इसलिए ताकि एसीचालू रहे, क्या ये पेट्रोल की बर्बादी नहीं है.
सरकारी गाड़ियों, खासकर नेताओ की गाड़ियों में पेट्रोल प्रयोग होता है, कही इसीलिए तो पेट्रोल में वृद्धि नहीं की गयी.
एक समय था जब डीजल और पेट्रोल की कीमतों में दोगुने का अंतर होता था. लेकिन आज ये अंतर काफी कम हो गया है,क्यों.
पहले डीजल अगर 8 रुपये लीटर होता था तो पेट्रोल 16 रुपये.
और एलपीजी तो आम आदमी की जरूरत का सामान है फिर उसकी संख्या सीमित क्यों की गयी.
जबकि इसके विपरीत हज यात्रा जैसे फिजूल मदों में काफी सब्सिडी दी जाती है.
जबकि हज यात्रा लोग अपना कर्म सुधारने के लिए जाते हैं.तो सरकारी पैसा उसमें क्यों बर्बाद किया जाए.
और भी कई ऐसी सरकारी योजनायें हैं जो कारगर नहीं होती,फिर भी उन पर सरकारी पैसा बहाया जाता है.
तो आम आदमी की जरूरतों पर क्यों नहीं.
इसी तरह न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानो की फसलों का कम से कम मूल्य होता है. लेकिन वह सरकारी रेट हो जाता है,मतलब उससे अधिक पर किसान की फसल सीजन रहते तो नहीं बिक सकती.बाकी जो भी हो.
नतीजा ये निकलता है कि किसान कर्ज में डूबकर आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं.
क्या ऐसा सिर्फ इसलिए है कि नेताओं और अफसरों को राशन खरीद कर खाना पड़ता है.
और वो उसकी कीमतों में वृद्धि नहीं चाहते.
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